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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-(किम्) कतरो भवतो: कठः (जाति:)। कतरो भवतो: कारक: (क्रिया)। कतरो भवतो: पटुः (गुण:)। कतरो भवतोदेवदत्त: (संज्ञा)। (यत्) यतरो भवतो: कठः। यतरो भवत: कारकः । यतरो भवतो: पटुः । यतरो भवतोदेवदत्त:, (तत्) ततर आगच्छतु।
आर्यभाषा: अर्थ-(द्वयोः) दो में से (एकस्य) एक के (निर्धारणे) पृथक् करने अर्थ में विद्यमान (किंयत्तदः) किम्, यत्, तत् प्रातिपदिकों से (डतरच्) डतरच् प्रत्यय होता है।
__उदा०-(किम्) आप दोनों में कठ कतर कौनसा है (जाति)। आप दोनों में करनेवाला कतर कौनसा है (क्रिया)। आप दोनों में पटु चतुर कतर-कौनसा है (गुण)। आप दोनों में देवदत्त कतर-कौनसा है (संज्ञा)। (यत्) आप दोनों में यतर-जौनसा कठ है। आप दोनों में यतर जौनसा करनेवाला है। आप दोनों में यतर-जौनसा पटु-चतुर है। आप दोनों में यतर जौनसा देवदत्त है, (तत्) ततर-दोनों में से वह-आजावे।
सिद्धि-कतर: । किम्+सु+डतरच् । क्+अतर। कतर+सु । कतरः ।
यहां दो में से एक के निर्धारण पृथक्करण अर्थ में विद्यमान 'किम्' शब्द से इस सूत्र से 'डतरच्' प्रत्यय है। प्रत्यय के डित् होने से वा-डित्यभस्यापि टेर्लोप:' (६।४।१४३) से अंग के टि-भाग (इम्) का लोप होता है। ऐसे ही-यतरः, ततरः।
डतमच
(२) वा बहूनां जातिपरिप्रश्ने डतमच्।६३ । प०वि०-वा अव्ययपदम्, जातिपरिप्रश्ने ७१ डतमच् १।१ ।
स०-जाते: परिप्रश्न:-जातिपरिप्रश्न:, तस्मिन्-जातिपरिप्रश्ने (षष्ठीतत्पुरुषः)।
अनु०-किंयत्तदः, निर्धारणे, एकस्य इति चानुवर्तते।
अन्वय:-बहूनामेकस्य निर्धारणे जातिपरिप्रश्ने च विषये किंयत्तदो वा डतमच् ।
अर्थ:-बहूनामेकस्य निर्धारणेऽर्थे जातिपरिप्रश्ने च विषये वर्तमानेभ्य: किंयत्तदभ्य: प्रातिपदिकेभ्यो विकल्पेन डतमच् प्रत्ययो भवति, पक्षे चाऽकच् प्रत्ययो भवति।
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