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________________ पञ्चमाध्यायस्य तृतीय पादः ३४७ उदा०-(किम्) कतमो भवतां कठ: । (यत्) यतमो भवतां कठः । (तत्) ततम आगच्छतु (डतमच्) । (किम् ) कको भवतां कठ: । (यत्) यको भवतां कठः । (तत्) सक आगच्छतु (अकच्) । 'समर्थानां प्रथमाद् वा' (४।१।८२ ) इत्यस्माद् महाविभाषाया अनुवर्तनाद् वाक्यमपि भवति - (किम् ) को भवतां कठ: । (यत्) यो भवतां कठः । (तत्) स आगच्छतु । आर्यभाषाः अर्थ- (बहूनाम् ) बहुतों में से (एकस्य) एक के (निर्धारणे) पृथक् करने अर्थ में और (जातिपरिप्रश्ने) जाति के पूछने विषय में विद्यमान (किंयत्तदः ) किम्, यत्, तत् प्रातिपदिकों से (वा) विकल्प से (डतमच्) उतमच् प्रत्यय होता है । उदा०- (किम्) आप सब में कतम = कौनसा कठ है। (यत्) आप सब में यतम = जौनसा कठ है। (तत्) ततम= सब में से वह - आजावे ( इतमच्) । (किम्) आप में से कक = कौनसा कठ है। (यत्) आप सब में से यक = जौनसा कठ है । (तत्) सब में से सक= वह आजावे । 'समार्थानां प्रथमाद् वा' (४ |१ |८२ ) से महाविभाषा की अनुवृत्ति से वाक्य भी होता है- (किम् ) आप सब में से क: कौन कठ है। (यत्) आप सब में से यः = जो कठ है । (तत्) आप सब में से सः = वह आजावे | सिद्धि - कतमः । किम्+सु+डतमच्। क्+अतम । कतम+सु । कतमः । यहां बहुतों में से एक के निर्धारण= पृथक्करण अर्थ में विद्यमान तथा जातिपरिप्रश्न विषयक किम्' शब्द से इस सूत्र से 'डतमच्' प्रत्यय है। प्रत्यय के डित्' हेने से वा- 'डित्यभस्यापि टेर्लोपः' (६ । ४ । १४३) से अंग के टि-भाग (इम् ) का लोप होता है । ऐसे ही - यतम:, ततमः । (२) ककः । क+सु+अकच्+ : । क्+अक+0+ : । ककः । यहां सुबन्त 'क: ' शब्द से विकल्प पक्ष में 'अव्ययसर्वनाम्नामकच् प्राक् टे: ' (५1३ 1७१) से टि-भाग से पूर्व 'अकच्' प्रत्यय होता है। ऐसे ही यक: । सकः । डतरच्+डतमच्— (३) एकाच्च प्राचाम् | १४ | प०वि० - एकात् ५ ।१ च अव्ययपदम्, प्राचाम् ६।३। अनु०-निर्धारणे, द्वयोः, एकस्य, डतरच्, बहूनाम्, डतमच् इति चानुवर्तते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003299
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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