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________________ ३४३ पञ्चमाध्यायस्य तृतीय पादः अनु०-ह्रस्वे इत्यनुवर्तते। अन्वय:-ह्रस्वे कुटीशमीशुण्डाभ्यो र:।। अर्थ:-ह्रस्वेऽर्थे वर्तमानेभ्य: कुटीशमीशुण्डाशब्देभ्य: प्रातिपदिकेभ्यो र: प्रत्ययो भवति। उदा०-ह्रस्वा कुटी-कुटीर: । ह्रस्वा शमी-शमीरः । ह्रस्वा शुण्डाशुण्डारः। आर्यभाषा: अर्थ-(ह्रस्वे) ह्रस्व अर्थ में विद्यमान (कुटीशमीशुण्डाभ्यः) कुटी, शमी, शुण्डा प्रातिपदिकों से (र:) र प्रत्यय होता है। उदा०-हस्व कुटी-झोंपड़ी-कुटीर । ह्रस्व शमी-जांटी-शमीर । ह्रस्व शुण्डा हाथी का सूंड-शुण्डार। सिद्धि-कुटीरः । कुटी+सु+र। कुटी+र । कुटीर+सु। कुटीरः । यहां ह्रस्व अर्थ में विद्यमान 'कुटी' शब्द से इस सूत्र से 'र' प्रत्यय है। ऐसे ही-शमीर:, शुण्डारः। डुपच् (४) कुत्वा डुपच् ।८६६ प०वि०-कुत्वा: ५।१ डुपच् १।१। अनु०-ह्रस्वे इत्यनुवर्तते। अन्वयः-ह्रस्वे कुतूशब्दाड्डुपच् । अर्थ:-ह्रस्वेऽर्थे वर्तमानात् कुतूशब्दात् प्रातिपदिकाड्डुपच् प्रत्ययो भवति। उदा०-ह्रस्वा कुतू:-कुतूपम्। कुतूपम् चर्ममयं तैलपात्रम् । आर्यभाषा: अर्थ-(ह्रस्वे) ह्रस्व अर्थ में विद्यमान (कुत्वाः) कुतू प्रातिपदिक से (डुपच्) डुपच् प्रत्यय होता है। उदा०-ह्रस्व कुतू-कुप्पी-कुतूप। चमड़े का बना तैलपात्र । सिद्धि-कुतुपम् । कुतू+सु+डुपच् । कुत्+उप। कुतुप+सु । कुतुपम्। यहां ह्रस्व अर्थ में विद्यमान 'कुतू' शब्द से इस सूत्र से डुपच्' प्रत्यय है। प्रत्यय के डित् होने से वा-डित्यभस्यापि टेर्लोप:' (६।४।१४३) से अंग के टि-भाग (ऊ) का लोप होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003299
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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