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________________ ३४० पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् सुपरिदत्त:-सुपरिक: । सुपरिय: । सुपरिल: । (विशालादि:) अनुकम्पितो विशालदत्त:-विशालिकः । विशालिय: । विशालिल: । (वरुणादि:) अनुकम्पितो वरुणदत्त:-वरुणिक: । वरुणिय: । वरुणिल:। (अर्यमादिः) अनुकम्पितोऽर्यमदत्त:-अर्यमिक: । अमिय: । अर्यमिल: । आर्यभाषा: अर्थ- नीतौ च तयुक्तात्' (५।३।७७) इस प्रकरण में (शेवलसुपरिविशालवरुणार्यमादीनाम्) शेवल, सुपरि, विशाल, वरुण, अयर्मा शब्द जिनके आदि में है उन (मनुष्यनाम्न:) मनुष्यवाची प्रातिपदिकों के (तृतीयात्) तीसरे (अच:) अच् से (ऊर्ध्वम्) आगे जो शब्द है उसका (लोप:) लोप होता है (ठाजादौ) ठ और अजादि प्रत्यय परे होने पर। __ उदा०-(शेवलादि) अनुकम्पित शेवलदत्त-शेवलिक (ठच्) । शेवलिय (घन्)। शेवलिल (इलच्) । (सुपर्यादि) अनुकम्पित सुपरिदत्त-सुपरिक । सुपरिय। सुपरिल। (विशालादि) अनुकम्पित विशालदत्त-विशालिक। विशालिय। विशालिल। (वरुणादि) अनुकम्पित वरुणदत्त-वरुणिक । वरुणिय। वरुणिल। (अर्यमादि) अनुकम्पित अर्यमदत्त-अमिक । अमिय। अमिल। सिद्धि-(१) शेवलिकः । शेवलदत्त सु+ठच् । शेवल०+इक । शेवलिक+सु। शेवलिकः । यहां अनुकम्पा अर्थ से युक्त, मनुष्यवाची शेवलदत्त'शब्द से नीति अर्थ अभिधेय में बहचो मनुष्यनाम्नष्ठज् वा' (५।३।७८) ठच्' प्रत्यय करने पर 'शेवलदत्त' के तृतीय अच् से ऊर्ध्व विद्यमान 'दत्त' शब्द का इस सूत्र से लोप होता है। ऐसे हीसुपरिक: आदि। (२) शेवलियः। यहां पूर्वोक्त शेवलदत्त' शब्द से 'घनिलचौ च' (५।३ १७९) से घन् प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-सुपरिय: आदि। (३) शेवलिलः । यहां पूर्वोक्त 'शेवलदत्त' शब्द से घनिलचौ च' (५।३।७९) से इलच्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-सुपरिल: आदि। अल्पार्थप्रत्ययविधिः यथाविहितं प्रत्ययः (१) अल्पे।८५। वि०-अल्पे ७१। अनु०-'तिङश्च' (५ ।३।५६) इत्यनुवर्तनीयम्। अन्वय:-अल्पे प्रातिपदिकात् तिङश्च यथाविहितं प्रत्ययः। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003299
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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