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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा: अर्थ- (कुत्सिते) निन्दित अर्थ में विद्यमान प्रातिपदिक से (कन्) कन् प्रत्यय होता है (संज्ञायाम्) यदि वहां संज्ञा अर्थ की प्रतीति हो।
उदा०-कुत्सित-निन्दित शूद्र-शूद्रक (विदिशा नगरी का एक राजा और मृच्छकटिक नामक काव्य का रचयिता महाकवि)। कुत्सित धार-धारक (कलश आदि)। कुत्सित पूर्ण-पूर्णक (पाचक)।
सिद्धि-शूद्रकः । शूद्र+सु+कन्। शूद्र+क। शूद्रक+सु । शूद्रकः ।
यहां कुत्सित अर्थ में विद्यमान शूद्र' शब्द से संज्ञा अर्थ अभिधेय में इस सूत्र से कन्' प्रत्यय है। यह 'क' प्रत्यय का अपवाद है। ऐसे ही-धारकः, पूर्णकः ।
__ अनुकम्पार्थप्रत्ययप्रकरणम् यथाविहितं प्रत्ययः
(१) अनुकम्पायाम् ७६। वि०-अनुकम्पायाम् ७१। अनु०-'तिङश्च' (५।३।५६) इत्यनुवर्तनीयम्। अन्वय:-प्रातिपदिकात् तिङश्च यथाविहितं प्रत्ययोऽनुकम्पायाम् ।
अर्थ:-प्रातिपदिकात् तिङन्ताच्च यथाविहितं प्रत्ययो भवति, अनुकम्पायां गम्यमानायाम्। कारुण्येन परस्यानुग्रह:-उपकारोऽनुकम्पेति कथ्यते।
उदा०-अनुकम्पित: पुत्र:-पुत्रक: । वत्सक: । दुर्बलक: । बुभुक्षितकः । अनुकम्पित: स्वपिति-स्वपितकि। पठतकि।
आर्यभाषा: अर्थ-(प्रातिपदिकात्) प्रातिपदिक से और (तिङ:) तिङन्त से (च) भी यथाविहित प्रत्यय होता है (अनुकम्पायाम्) यदि वहां अनुकम्पा अर्थ की प्रतीति हो। करुणापूर्वक दूसरे का उपकार करना-'अनुकम्पा' कहाती है।
उदा०-अनुकम्पित पुत्र-पुत्रक। करुणापूर्वक उपकृत पुत्र । लाडला बेटा। अनुकम्पित वत्स-वत्सक । लाडला बच्चा। अनुकम्पित सोता है-स्वपितकि। माता के द्वारा लोरी देकर बड़े प्यार से सुलाया हुआ बच्चा जो सो रहा है, वह । अनुकम्पित पढ़ता है-पठतकि। करुणापूर्वक प्रदान की गई छात्रवृत्ति आदि से जो पढ़ रहा है, वह।।
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