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पञ्चमाध्यायस्य तृतीय पादः
ર૬૬ दिक्-(पूर्व:)-पूर्वस्यां दिशि वसति-पुरो वसति (सप्तमी)। पूर्वस्या दिश आगत:-पुर आगत: (पञ्चमी)। पूर्वा दिग् रमणीया-पुरो रमणीया (प्रथमा। (अधरः) अधरस्यां दिशि वसति-अधो वसति (सप्तमी)। अधरस्या दिश आगत:-अध आगत: (पञ्चमी) । अधरा दिग् रमणीया-अधो रमणीया (प्रथमा)। (अवर:) अवरस्यां दिशि वसति-अवो वसति (सप्तमी)। अवरस्या दिश आगत:-अव आगत: (पञ्चमी)। अवरा दिग् रमणीया-अवो रमणीया (प्रथमा)।
इत्थम्-देशे काले चार्थे पश्चाद्वद् उदाहार्यम्।
आर्यभाषा: अर्थ-(दिग्देशकालेषु) दिक्, देश, काल अर्थों में विद्यमान, (सप्तमीपञ्चमीप्रथमाभ्यः) सप्तमी-पञ्चमी-प्रथमान्त (दिक्शब्देभ्य:) दिशावाची (पूर्वाधरावराणाम्) पूर्व, अधर, अवर प्रातिपदिकों से स्वार्थ में (असि:) असि प्रत्यय होता है और (एषाम्) पूर्व आदि शब्दों के स्थान में (पुरधव:) यथासंख्य पुर्, अध्, अव् आदेश होते हैं। उदाहरण
दिक् (पूर्व) पूर्व दिशा में रहता है-पुर: रहता है (सप्तमी)। पूर्व दिशा से आया-पुरः आया (पञ्चमी)। पूर्व दिशा रमणीया-पुर: रमणीया (प्रथमा)। (अधर) अधर दिशा में रहता है-अध: रहता है (सप्तमी)। अधर दिशा से आया-अध: आया (पञ्चमी)। अधर दिशा रमणीया-अध: रमणीया (प्रथमा)। (अवर) अवर दिशा में रहता है-अव: रहता है (सप्तमी)। अवर दिशा से आया-अव: आया (पञ्चमी)। अवर दिशा रमणीया-अव: रमणीया (प्रथमा)।
इसी प्रकार देश और काल अर्थ में ‘पश्चात्' शब्द के सहाय से शेष उदाहरणों की स्वयं ऊहा कर लेवें।
सिद्धि-(१) पुरः । पूर्व+डि+डसि+सु+असि। पुर्+अस्। पुरस्+सु। पुरस्+० । पुररु। पुर। पुरः।
यहां दिक, देश, काल अर्थ में विद्यमान, सप्तमी-पञ्चमी-प्रथमान्त, दिशावाची पूर्व शब्द से स्वार्थ में इस सूत्र से असि प्रत्यय है और पूर्व' को 'पुर' आदेश होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(२) अधः। यहां पूर्ववत् 'अधर' शब्द से इस सूत्र से 'असि' प्रत्यय है और 'अधर' को 'अध्' आदेश होता है।
(३) अव: । यहां पूर्ववत् अवर' शब्द से इस सूत्र से 'असि' प्रत्यय है और 'अवर' को 'अव्' आदेश होता है।
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