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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (३) काल:-(पर:) परस्मिन् काले वसति-परतो वसति । परस्ताद् वसति (सप्तमी)। परस्माद् देशाद् आगत:-परत आगतः। परस्ताद् आगत: (पञ्चमी)। परा दिग् रमणीया-परतो रमणीया। परस्ताद् रमणीया (प्रथमा)।
___आर्यभाषा: अर्थ-(दिग्देशकालेषु) दिशा, देश, काल अर्थों में विद्यमान (सप्तमीपञ्चमीप्रथमाभ्य:) सप्तमी-पञ्चमी-प्रथमान्त (दिक्शब्देभ्यः) दिशावाची (परावराभ्याम्) पर, अवर प्रातिपदिकों से स्वार्थ में (विभाषा) विकल्प से (अतसुच्) अतसुच् प्रत्यय होता है और पक्ष में 'अस्ताति' प्रत्यय होता है। उदाहरण
(१) दिक्-(पर) पर दिशा में रहता है-परत: रहता है (अतसुच्)। परस्तात् रहता है (अस्ताति)। पर देश से आया-परत: आया। परस्तात् आया (पञ्चमी)। पर दिशा रमणीया-परत: रमणीया। परस्तात् रमणीया (प्रथमा)। (अवर) अवर दिशा में रहता है-अवरत: रहता है। अवरस्तात् रहता है (सप्तमी)। अवर दिशा से आया-अवरत: आया। अवरस्तात् आया (पञ्चमी) अवर दिशा रमणीया-अवरत: रमणीया। अवरस्तात् रमणीया (प्रथमा)।
(२) देश-(पर) पर देश में रहता है-परत: रहता है। परस्तात् रहता है (सप्तमी)। पर देश से आया-परत: आया। परस्तात् आया (पञ्चमी)। पर देश रमणीय-परत: रमणीय। परस्तात् रमणीय (प्रथमा)। (अवर) अवर देश में रहता है-अवरत: रहता है। अवरस्तात् रहता है (सप्तमी)। अवर देश से आया-अवरत: आया। अवरस्तात् आया (पञ्चमी)। अवर देश रमणीय-अवरत: रमणीय। अवरस्तात् रमणीय (प्रथमा)।
(३) काल-(पर) पर काल में रहता है-परत: रहता है। परस्तात् रहता है (सप्तमी)। पर काल से आया-परत: आया। परस्तात् आया (पञ्चमी)। पर काल रमणीय-परत: रमणीय। परस्तात् रमणीय (प्रथमा)। (अवर) अवर काल में रहता है-अवरत: रहता है। अवरस्तात् रहता है (सप्तमी)। अवर काल से आया-अवरत: आया। अवरस्तात् आया (पञ्चमी)। अवर काल रमणीय-अवरत: रमणीय। अवरस्तात् रमणीय (प्रथमा)।
सिद्धि-(१) परतः । पर+कि+सि+सु+अतसुच् । पर्+अतस्। परतस्+सु। परतस्+० । परतस् । परतरु। परतर्। परतः ।
यहां दिक्, देश, काल अर्थ में विद्यमान, सप्तमी-पञ्चमी-प्रथमान्त, दिशावाची 'पर' शब्द से स्वार्थ में इस सूत्र से ‘अतसुच्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे हीअवरत:।
(२) परस्तात् । यहां पूर्वोक्त 'पर' शब्द से विकल्प पक्ष में 'अस्ताति' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
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