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(४) ऐषम
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (१) सद्य
समान (एक) दिन में। (२) परुत्
पहले संवत्सर (वर्ष) में। (३) परारि
दो में से पहले संवत्सर में।
इस संवत्सर में। (५) परेद्यवि
परवर्ती दिन में। (६) अद्य
इस वर्तमान दिन में। (७) पूर्वेद्यु
पूर्ववर्ती दिन में। (८) अन्येद्यु
अन्य किसी दिन में। अन्यतरेछु दो में से किसी एक दिन में। (१०) इतरेधु
दूसरे दिन में। (११) अपरेछु
पिछले दिन में। (१२) अधरेधु
निचले दिन में। (१३) उभयेद्यु
दोनों दिनों में। (१४) उत्तरेछु
अगले दिन में। सिद्धि-(१) सद्यः । समान+डि+द्यस् । स+द्यस् । स+द्यर। स+द्यर् । सद्य+सु। सद्य+0 | सद्यः।
___यहां सप्तम्यन्त समान' शब्द से काल (दिन) अभिधेय में 'यस्' प्रत्यय और 'समान' को 'स' आदेश निपातित है।
(२) परुत् । पूर्व+डि+उत् । पर+उत्। परुत्+सु। परुत् ।
यहां सप्तम्यन्त 'पूर्व' शब्द से काल (संवत्सर) अर्थ अभिधेय में उत् प्रत्यय और 'पूर्व' को पर' आदेश निपातित है। 'यस्येति च' (६।४।१४८) से अंग के अकार का लोप होता है।
(३) परारि। पूर्वतर+डि+आरि। पर+आरि। परारि+सु। परारि।
यहां सप्तम्यन्त पूर्वतर' शब्द से काल (संवत्सर) अर्थ अभिधेय में 'आरि' प्रत्यय और 'पूर्वतर' को 'पूर्व' आदेश निपातित है।
(४) ऐषमः । इदम्+डि+समसण् । इश्+समस्। ऐ+षमस् । ऐषमस्+सु । ऐषमस्+० ऐषमरु। ऐषमर् । ऐषमः।
यहां सप्तम्यन्त इदम्' शब्द से काल (संवत्सर) अर्थ अभिधेय में समसण् प्रत्यय और 'इदम्' को 'इश्' सवदिश निपातित है। तद्धितेष्वचामादेः' (७।२।११७) से अंग को आदिवृद्धि और 'आदेशप्रत्यययोः' (८।३।५९) से षत्व होता है।
(५) परेद्यविः । पर+डि+एद्यवि। पर+एद्यवि। परेद्यवि+सु । परेद्यवि+० । परेद्यवि।
यहां सप्तम्यन्त 'पर' शब्द से 'एद्यवि' प्रत्यय निपातित है। यस्येति च (६।४।१४८) से अंग के अकार का लोप होता है।
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