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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अन्वय:-सप्तम्यन्तेभ्यो व्यादिवर्जितेभ्य: किंसर्वनामबहुभ्य:-त्रत् ।
अर्थ:-सप्तम्यन्तेभ्यो द्वयादिवजितेभ्य: किंसर्वनामबहुभ्य: प्रातिपदिकेभ्यस्त्रल् प्रत्ययो भवति।
उदा०- (किम्) कस्मिन्-कुत्र। (सर्वनाम) यस्मिन्-यत्र । तस्मिन्तत्र। (बहुः) बहौ-बहुत्र।
आर्यभाषा: अर्थ-(सप्तम्या:) सप्तम्यन्त (अद्वयादिभ्यः) द्वि-आदि से रहित (किंसर्वनामबहुभ्य:) किम्, सर्वनाम, बहु प्रातिपदिकों से (अल्) बल् प्रत्यय होता है।।
उदा०-(किम्) किसमें-कुत्र (कहां)। (सर्वनाम) जिसमें-यत्र (जहां)। उसमें-तत्र (वहां)। (बहु) बहुतों में-बहुत्र (बहुत स्थानों पर)।
सिद्धि-कुत्र । किम्+डि+त्रल। कु+त्र। कुत्र+सु। कुत्र+० । कुत्र।
यहां सप्तम्यन्त किम्' शब्द से इस सूत्र से वल्’ प्रत्यय है। 'कुतिहो:' (७।२।१०४) से 'किम्' के स्थान में 'कु' आदेश होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-यत्र, तत्र, बहुत्र। हः
(११) इदमो हः।११। प०वि०-इदम: ५।१ ह: ११ । अनु०-सप्तम्या इत्यनुवर्तते। अन्वय:-सप्तम्या इदमो हः । अर्थ:-सप्तम्यन्ताद् इदम्-शब्दात् प्रातिपदिकाद् ह: प्रत्ययो भवति। उदा०-अस्मिन् इह।
आर्यभाषा: अर्थ- (सप्तम्या:) सप्तम्यन्त (इदमः) इदम् प्रातिपदिक से (ह:) ह प्रत्यय होता है।
उदा०-इसमें-इह (यहां)। सिद्धि-इह । इदम्+डि+ह। इश्+ह। इ+ह । इह+सु। इह+० । इह।
यहां सप्तम्यन्त इदम्' शब्द से इस सूत्र से है' प्रत्यय है। 'इदम् इश् (५ ।३।३) से 'इदम्' के स्थान में इश्’ सवदिश होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
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