________________
२२५
पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् प्रत्यय का लुप्, इलच् (अण्) अण् और मतुप् प्रत्यय होते हैं (देशे) यदि वहां देश अर्थ अभिधेय हो (अस्ति) जो प्रथमा-समर्थ है यदि वह अस्ति' हो।
उदा०-(सिकता) सिकता=बाळू रेत इसका है वा इसमें है यह-सिकता देश (प्रत्यय का लुप्) । सिकतिल देश (इलच्) । सैकत देश (अण्)। सिकतावान् देश (मतुप्)। रेतीला देश बागड़। (शर्करा) शर्करा कांकर इसकी है या इसमें है यह-शर्करा देश (लुप)। शरिल देश (इलच्) । शार्कर देश (अण्) । शर्करावान् देश (मतुप) कंकरीला देश।
सिद्धि-(१) सिकता। सिकता+सु+० । सिकता+ । सिकता+सु । सिकता।
यहां प्रथमा-समर्थ सिकता' शब्द से अस्य (षष्ठी) और अस्मिन् (सप्तमी) के अर्थ में इस सूत्र से प्रत्यय का लुप्' है। प्रत्यय-विशेष का कथन न होने से प्रत्ययमात्र' का लुप् समझना चाहिये। 'लुपि युक्तवद् व्यक्तिवचने (१।२।५१) से प्रत्यय के लुप् हो जाने पर व्यक्ति लिङ्ग और वचन युक्तवत्-पूर्ववत् ही रहते हैं। 'हल्याब्भ्यो दीर्घात्' (६।१।६७) से 'सु' का लोप होता है। ऐसे ही-शर्करा देश: ।
(२) सिकतिलः । सिकता+सु+इलच् । सिकत्+इल। सिकतिल+सु। सिकतिल: ।
यहां सिकता' शब्द से पूर्ववत् 'इलच्' प्रत्यय है। 'यस्येति च' (६।४।१४८) से अंग के आकार का लोप होता है। ऐसे ही-शर्करिलो देश:।
(३) सैकत: । सिकता+सु+अण् । सैकत्+अ। सैकत+सु। सैकतः ।
यहां सिकता' शब्द से पूर्ववत् 'अण्' प्रत्यय है। पूर्ववत् अंग के आकार का लोप होता है। ऐसे ही-शार्करो देशः ।
(४) सिकतवान् । यहां 'सिकता' शब्द से पूर्ववत् 'मतुप्' प्रत्यय है। शेष कार्य वृक्षवान्' (५।२।९४) के समान है। ऐसे ही-शर्करावान् देशः। उरच
(१३) दन्त उन्नत उरच् ।१०६। प०वि०-दन्त: १।१ (पञ्चम्यर्थे) उन्नते ७।१ उरच् १।१। अनु०-तत्, अस्य, अस्ति, अस्मिन्, इति, इति चानुवर्तते। अन्वय:-तद् दन्ताद् अस्य, अस्मिन्निति च उरच्, उन्नतोऽस्ति।
अर्थ:-तद् इति प्रथमासमर्थाद् दन्त-शब्दात् प्रातिपदिकाद् अस्येति षष्ठ्यर्थे, अस्मिन्निति च सप्तम्यर्थे उरच् प्रत्ययो भवति, यत् प्रथमासमर्थमुन्नतोऽस्ति चेत् तद् भवति ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org