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________________ १८४ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (डट)। एकत्रिंशत्तमः (तमट)। एकत्रिंश: (डट्)। अत्र विंशत्यादयो लौकिका: संख्यावाचिशब्दा गृह्यन्ते। आर्यभाषा अर्थ- (तस्य) षष्ठी-समर्थ (संख्यायाः) संख्यावाची (विंशत्यादिभ्यः) विंशति-आदि प्रातिपदिकों से (पूरणे) पूरण अर्थ में (डट) डट् प्रत्यय होता है और उसे (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (तमट्) आगम होता है। उदा०-विंशति बीस को पूरा करनेवाला-विंशतितम, बीसवां (तमट्)। विंश. बीसवां (डट्) । एकविंशति-इक्कीस को पूरा करनेवाला-एकविंशतितम, इक्कीसवां (तमट्) । एकविंश, इक्कीसवां (डट)। त्रिंशत्-तीस को पूरा करनेवाला-त्रिंशत्तम, तीसवां (तमट्)। त्रिंश, तीसवां (डट्)। एकत्रिंशत् इकत्तीस को पूरा करनेवाला-एकत्रिंशत्तम, इकत्तीसवां (तमट्)। एकत्रिंश इकतीसवां (डट)। सिद्धि-(१) विंशतितमः । विंशति+डस्+डट्। विंशति+तमट्+अ। विंशति+तम्+अ। विंशतितम+सु । विशतितमः। यहां षष्ठी-समर्थ, लौकिक संख्यावाची विंशति' शब्द से पूरण अर्थ में इस सूत्र से 'डट्' प्रत्यय और उसे तमट' आगम होता है। तमट' आगम के अन्तर से 'विंशति' शब्द की भ-संज्ञा न होने से 'ति विंशतेर्डिति (६।४।१४५) से विंशति' के ति-भाग का लोप नहीं होता है। ऐसे ही-एकविंशतितमः, त्रिंशत्तमः, एकत्रिंशत्तमः। (२) विश: । विंशति+इस+डट । विशति+अ। विश+अ। विश+सु। विंशः।। यहां षष्ठी-समर्थ, लौकिक संख्यावाची विंशति' शब्द से पूरण अर्थ में इस सूत्र से 'डट' प्रत्यय है और विकल्प पक्ष में तमट् आगम नहीं होता है। अत: 'विंशति' शब्द की यचि भम्' भ-संज्ञा होने से ति विंशतेर्डिति (६।४।१४५) से विंशति के ति-भाग को लोप हो जाता है। अतो गुणे (६।१।९६) से दोनों अकारों को पररूप एकादेश (अ) होता है। ऐसे ही-एकविंशः, त्रिंश:, एकत्रिंशः । डट् (नित्यं तमट्) (१०) नित्यं शतादिमासार्धमाससंवत्सराच्च ।५७ । प०वि०-नित्यम् १।१ शतादि-मास-अर्धमास-संवत्सरात् ५।१ च अव्ययपदम्। सo-शतम् आदिर्येषां ते शतादय:, शतादयश्च मासश्च अर्धमासश्च संवत्सरश्च एतेषां समाहार: शतादिमासार्धमाससंवत्सरम्, तस्मात्शतादिमासार्धमाससंवत्सरात् (बहुव्रीहिगर्भितसमाहारद्वन्द्वः) । . अनु०-संख्याया:, तस्य, पूरणे, डट, तमट् इति चानुवर्तते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003299
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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