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________________ पञ्चमाध्यायस्य द्वितीय पादः १८५ अन्वयः-तस्य संख्याभ्य: शतादिभ्यो मासार्धमाससंवत्सरेभ्यश्च पूरणे डट, नित्यं तमट् । अर्थ:-तस्य इति षष्ठीसमर्थेभ्य: संख्यावाचिभ्यः शतादिभ्यो मासार्धमाससंवत्सरेभ्यश्च प्रातिपदिकेभ्य: पूरणेऽर्थे डट् प्रत्ययो भवति, तस्य च नित्यं तमट्-आगमो भवति । उदा०-(शतादि:) शतस्य पूरण:-शततमः । सहस्रतम: । लक्षतमः । (मास:) मासस्य पूरण:-मासतमो दिवस:। (अर्धमास:) अर्धमासस्य पूरण:-अर्धमासतमो दिवस: । (संवत्सरः) संवत्सरस्य पूरण:-संवत्सरतमो दिवसः। आर्यभाषा: अर्थ-(अस्य) षष्ठी-समर्थ (संख्यायाः) लौकिक संख्यावाची (शतादिमासार्धमाससंवत्सरेभ्य:) शतादि और मास, अर्धमास, संवत्सर प्रातिपदिकों से (च) भी (पूरणे) पूरा करनेवाला अर्थ में (डट) डट् प्रत्यय होता है और उसे (नित्यम) सदा (तमट्) तमट् आगम होता है। संख्यावाची विशेषण का सम्बन्ध शतादि शब्दों के ही साथ है, मास आदि शब्दों के साथ नहीं। उदा०-(शतादि) शत-सौ को पूरा करनेवाला-शततम (सौवां)। सहस्र-हजार को पूरा करनेवाला-सहस्रतम (हजारवा)। लक्ष लाख को पूरा करनेवाला-लक्षतम (लाखवां)। (मास) मास को पूरा करनेवाला-मासतम दिवस (मास का अन्तिम दिन)। (अर्धमास) आधा मास को पूरा करनेवाला-अर्धमास दिवस (अमावस्या, पौर्णमासी)। (संवत्सर) संवत्सरवर्ष को पूरा करनेवाला-संवत्सरतम (वर्ष का अन्तिम दिन-होलिका उत्सव)। सिद्धि-शततमः । शत+डस् डट् । शत+तमट्+अ। शत+तम्+अ। शततम+सु । शततमः। यहां षष्ठी-समर्थ, लौकिक संख्यावाची 'शत' शब्द से पूरण अर्थ में इस सूत्र से डट्' प्रत्यय और उसे नित्य तमट्' आगम होता है। ऐसे ही-सहस्रतम: आदि। डट् (नित्यं तमट्) (११) षष्ट्यादेश्चासंख्यादेः ।५८ । प०वि०-षष्टि-आदे: ५।१ च अव्ययपदम्, असंख्या-आदे: ५।१। स०-षष्टिरादिर्यस्य स षष्ट्यादिः, तस्मात् षष्टयादे: (बहुव्रीहिः)। संख्या आदिर्यस्य स संख्यादि:, न संख्यादिरिति असंख्यादि:, तस्मात्-असंख्यादे: (बहुव्रीहिगर्भितनञ्तत्पुरुषः)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003299
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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