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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् .. आर्यभाषा: अर्थ-सप्तमी-समर्थ (समां समाम्) समा-समा इस सुबन्त-समुदाय से (विजायते) बिआती है, अर्थ में (ख:) ख प्रत्यय होता है।
उदा०-समा-समा प्रत्येक वर्ष में बिआनेवाली-समांसमीना गौः (बरस ब्यावा गाया)।
सिद्धि-समांसमीना । समांसमा+डि+ख। समांसम्+ईन। समांसमीन्+टाप् । समांसमीना+सु। समांसमीना।
__यहां सप्तमी-समर्थ समांसमा' शब्द से विजायते-अर्थ में इस सूत्र से 'ख' प्रत्यय है। पूर्ववत् ‘ख्' के स्थान में 'ईन्' आदेश और अंग के अकार का लोप होता है।
विशेष: काशिकाकार पं० जयादित्य ने 'समांसमाम्’ यहां द्वितीया-विभक्ति स्वीकार की है क्योंकि कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे (२।३।५) से कालवाची शब्दों में अत्यन्त-संयोग अर्थ में द्वितीया-विभक्ति होती है। यहां विजायते' शब्द का अर्थ बिआती है; है। अत्यन्त प्रसव-क्रिया के समा (वर्ष) के साथ अत्यन्त संयोग नहीं है। पं० जयादित्य के अनुसार विजायते' का अर्थ गर्भधारण करती है; है। गर्भधारण करना रूप क्रिया का भी समा (वर्ष) के साथ अत्यन्त संयोग नहीं है क्योंकि वह तात्कालिक क्रिया है। महाभाष्यकार के अनुसार 'समांसमाम्' यहां सप्तमी-विभक्ति (समायाम् समायाम) है। यहां पूर्वपद के यकार का लोप निपातित है, उत्तरपद डि-प्रत्यय का सुपो धातुप्रातिपदिकयो:' (२।४ १७१) से लुक् हो ही जाता है। खः (निपातनम्)
(२) अद्यश्वीनाऽवष्टब्धे।१३। प०वि०-अद्यश्वीना ११ अवष्टब्धे ७१। अनु०-ख:, विजायते इति चानुवर्तते। " अन्वय:-सप्तमीसमर्थम् अद्यश्वीना इति पदं विजायते खोऽवष्टब्धे।
अर्थ:-सप्तमीसमर्थम् 'अद्यश्वीना' इति पदं विजायते इत्यस्मिन्नर्थे ख-प्रत्ययान्तं निपात्यते, अवष्टब्धे गम्यमाने।
उदा०-अद्य श्वो वा विजायते-अद्यश्वीना गौः। अद्यश्वीना वडवा।
आर्यभाषा: अर्थ-सप्तमी-समर्थ (अद्यश्वीना) 'अद्यश्वीना' यह पद (विजायते) बिआती है, अर्थ में (ख:) ख-प्रत्ययान्त निपातित है (अवष्टब्धे) यदि वहां अवष्टब्ध अविदूर (निकट) काल की प्रतीति हो।
उदा०-अद्य-श्व-आज और कल में बिआनेवाली-अद्यावी-ना गौ। अद्यश्वीना वडवा (घोड़ी)।
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