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पञ्चमाध्यायस्य प्रथमः पादः
१०६ निपातनम् (ठञ्)
(१०) ऐकागारिकट चौरे।११२। प०वि०-ऐकागारिकट १।१ चौरे ७।१।। अनु०-ठञ्, तत्, अस्य, प्रयोजनम् इति चानुवर्तते। अन्वयः-तद् ऐकागारिकड् अस्य ठञ्, प्रयोजनम्, चौरे।
अर्थ:-तद् इति प्रथमासमर्थम् एकागारिकट्' इति प्रातिपदिकम् अस्येति षष्ठ्यर्थे ठञ्-प्रत्ययान्तं-निपात्यते, यत् प्रथमासमर्थं प्रयोजनं चेत्, चौरेऽभिधेये।
उदा०-एकागारम् (असहायगृहम्) प्रयोजमस्य-ऐकागारिकश्चौरः । स्त्री चेत्-ऐकारिकी चौरी।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) प्रथमा-समर्थ (एकागारिकट्) ऐकागारिकट् प्रातिपदिक (अस्य) षष्ठी-विभक्ति के अर्थ में निपातित है (प्रयोजनम्) जो प्रथमा-समर्थ है यदि वह प्रयोजन हो और (चौरे) यदि वहां चौर अर्थ अभिधेय हो।
उदा०-एकागार (असहाय-घर) प्रयोजन है इसका यह-ऐकागारिक चौर। यदि स्त्री हो तो-ऐकागारिकी चौरी (चौर स्त्री)।
सिद्धि-ऐकागारिकः । एकागार+सु+ठञ्। ऐकागार्+इक। ऐकागारिक+सु। ऐकागारिकः ।
यहां प्रथमा-समर्थ 'एकागार' शब्द से अस्य (षष्ठी-विभक्ति) अर्थ में, प्रयोजन तथा चौर अर्थ अभिधेय में इस सूत्र से ठञ्' प्रत्यय निपातित है। पूर्ववत् ' के स्थान में 'इक्' आदेश, अंग को आदिवृद्धि और अंग के अकार का लोप होता है। यहां एकागार' शब्द से प्रागवतेष्ठज्ञ' (५।१।१८) से 'ठञ्' प्रत्यय तो सिद्ध ही है किन्तु चौर अर्थ में उसे निपातित किया गया है। एकागारिकट्' के टित् होने से स्त्रीत्व-विवक्षा में टिड्ढाण (४।१।१५) से डीप् प्रत्यय होता है-ऐकागारिकी।
विशेष: 'एकागार' शब्द में 'एक' पद असहायवाची है। एकागार अर्थात् अकेला घर । एकागार=अकेला घर जिस पुरुष का प्रयोजन है वह ऐकागारिक' चौर कहाता है। ससहाय घर में अनेक पुरुषों का अधिष्ठान होने से उसमें चोरी करना सम्भव नहीं होता है।
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