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पञ्चमाध्यायस्य प्रथमः पादः छ:
(८) अनुप्रवचनादिभ्यश्छः ।११०। प०वि०-अनुप्रवचन-आदिभ्य: ५।३ छ: १।१।
स०-अनुप्रवचनम् आदिर्येषां तेऽनुप्रवचनादयः, तेभ्य:-अनुप्रवचनादिभ्यः (बहुव्रीहिः)।
अनु०-तत्, अस्य, प्रयोजनम्, इति चानुवर्तते। अन्वय:-तद् अनुप्रवचनादिभ्योऽस्य छ:, प्रयोजनम् ।
अर्थ:-तद् इति प्रथमासमर्थेभ्योऽनुप्रवचनादिभ्य: प्रातिपदिकेभ्योऽस्येति षष्ठ्यर्थे छ: प्रत्ययो भवति, यत् प्रथमासमर्थं प्रयोजनं चेत् तद् भवति ।
उदा०-अनुप्रवचनं प्रयोजनमस्य-अनुप्रवचनीयो होमः । उत्थापनीयम् आन्दोलनम्, इत्यादिकम्। ___ अनुप्रवचन । उत्थापन । प्रवेशन । अनुप्रवेशन। उपस्थापन । संवेशन। अनुवेशन। अनुवचन । अनुवादन। अनुवासन। आरम्भण। आरोहण । प्ररोहण । अन्वारोहण। इति अनुप्रवचनादयः ।।
आर्यभाषा: अर्थ- (तत्) प्रथमा-समर्थ (अनप्रवचनादिभ्यः) अनुप्रवचन-आदि प्रातिपदिकों से (अस्य) षष्ठी-विभक्ति के अर्थ में (छ:) छ प्रत्यय होता है (प्रयोजनम्) जो प्रथमा-समर्थ है यदि वह प्रयोजन हो।
उदा०-अनुप्रवचन है प्रयोजन इसका यह-अनुप्रवचनीय होम। उत्थापन समाज को उठाना है प्रयोजन इसका-उत्थापनीय आन्दोलन, इत्यादि।
सिद्धि-अनुप्रवचनीयः । अनुप्रवचन++छ। अनुप्रवचन्+ईय। अनुप्रवचनीय+सु । अनुप्रवचनीयः।
यहां प्रथमा-समर्थ 'अनुप्रवचन' प्रातिपदिक से अस्य (षष्ठी-विभक्त्ति) अर्थ में तथा प्रयोजन अर्थ अभिधेय में इस सूत्र से 'छ' प्रत्यय है। 'आयनेय०' (७।१।२) से 'छु' के स्थान में 'ईय्' आदेश और पूर्ववत् अंग के अकार का लोप होता है। ऐसे ही-उत्थापनीयम्
आदि।
विशेष: उपनयन, गोदानव्रत, महानाम्नीव्रत आदि प्रत्येक व्रत की समाप्ति पर 'अनुप्रवचनीय' होम किया जाता था आश्व० १।२२। प्रवचनात् पश्चात् क्रियते इत्यनुप्रवचनीयहोमः} (पाणिनिकालीन भारतवर्ष पृ० २८७) ।
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