SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी प्रवचनम् यहां प्रथमा-समर्थ' 'इन्द्रमह' शब्द से अस्य (षष्ठी विभक्ति) अर्थ में तथा प्रयोजन अर्थ अभिधेय में 'प्राग्वतेष्ठञ्' (५ 1१1१८) से यथाविहित 'ठञ्' प्रत्यय है । पूर्ववत् ठू' के स्थान में 'इक्' आदेश, अंग को आदिवृद्धि और अंग के अकार का लोप होता है। ऐसे ही - गाङ्गमहिकम्, बौधरात्रिकम् । अण १०६ (७) विशाखाषाढादण् मन्थदण्डयोः । १०६ । प०वि० - विशाखा - आषाढात् ५ ।१ अण् १ ।१ मन्थ - दण्डयोः ७ । २ । स० - विशाखा च आषाढश्च एतयोः समाहारो विशाखाषाढम्, तस्मात् - विशाखाषाढात् (समाहारद्वन्द्वः) । मन्थश्च दण्डश्च तौ मन्थदण्डौ, तयो: - मन्थदण्डयोः (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । अनु० - तत् अस्य प्रयोजनम् इति चानुवर्तते । , अन्वयः-तद् मन्थदण्डयोर्विशाखाषाढाभ्याम् अस्याऽण्, प्रयोजनम् । अर्थ::- तद् इति प्रथमासमर्थाभ्यां यथासंख्यं मन्थदण्डयोरर्थयोवर्तमानाभ्यां विशाखाषाढाभ्यां प्रातिपदिकाभ्याम् अस्येति षष्ठ्यर्थेऽण् प्रत्ययो भवति, यत् प्रथमासमर्थं प्रयोजनं चेत् तद् भवति । उदा०- (विशाखा) विशाखा प्रयोजनमस्य- वैशाखो मन्थ: । ( आषाढ : ) आषाढः प्रयोजनमस्य- आषाढो दण्डः । आर्यभाषाः अर्थ- (तत्) प्रथमा - समर्थ (मन्थदण्डयोः) यथासंख्य मन्थ और दण्ड अर्थ में विद्यमान (विशाखाषाढात् ) विशाखा, आषाढ प्रातिपदिकों से (अस्य) षष्ठी विभक्ति के अर्थ में (अण्) अण् प्रत्यय होता है (प्रयोजनम् ) जो प्रथमा-समर्थ है यदि वह प्रयोजन हो । उदा० - (विशाखा) विशाखा है प्रयोजन इसका यह- :- वैशाख मन्थ = मथानी (रई) । ( आषाढ) आषाढ है प्रयोजन इसका यह - आषाढ दण्ड ( ब्रह्मचारी का पलाश आदि का डंडा ) । सिद्धि-वैशाख: । विशाखा+सु+अण् । वैशाख्+अ । वैशाख+सु । वैशाख: । यहां प्रथमा-समर्थ, मन्थ- अर्थ में विद्यमान 'विशाखा' शब्द से तथा प्रयोजन अर्थ अभिधेय में इस सूत्र से 'अण्' प्रत्यय है । पूर्ववत् अंग को आदिवृद्धि और अंग के आकार का लोप होता है। ऐसे ही 'आषाढ' शब्द से दण्ड अर्थ में- आषाढः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003299
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy