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चतुर्थाध्यायस्य प्रथमः पादः आर्यभाषा अर्थ- (भाषायाम्) लोक भाषा में (सख्यशिश्वी) सखी और अशिश्वी (इति) ये दोनों शब्द (स्त्रियाम्) स्त्रीलिङ्ग में (डीए) डीष्-प्रत्ययान्त निपातित हैं।
उदा०-सखीयं मे ब्राह्मणी। यह ब्राह्मणी मेरी सखी है। न यस्याः शिशुरस्तीति-अशिश्वी । वह ब्राह्मणी जिसका कोई शिशु-बालक नहीं है-वन्ध्या।।
सिद्धि-(१) सखी । सखि+डीए । सखि+ई। सखी+सु । सखी।। यहां सखि' शब्द से स्त्रीलिङ्ग में इस सत्र से डीए' प्रत्यय निपातित है।
(२) अशिश्वी। न+शिशु । अ+शिशु । अशिशु+डीए । अशिश्व्+ई। अशिश्वी+सु । अशिश्वी।
यहां अशिश' शब्द से स्त्रीलिङ्ग में इस सूत्र से डीए' प्रत्यय निपातित है। इको यणचि' (६।१।७४) से 'यण' आदेश है। डी
(२४) जातेरस्त्रीविषयादयोपधात् ।६३ । प०वि०-जाते: ५ ।१ अस्त्रीविषयात् ५।१ अयोपधात् ५।१।
स०-स्त्री विषयो यस्य तत्-स्त्रीविषयम्, न स्त्रीविषयम् इति अस्त्रीविषयम्, तस्मात्-अस्त्रीविषयात् (बहुव्रीहिगर्भितनञ्तत्पुरुष:)। य उपधा यस्य तद् योपधम्, न योपधम् इति अयोपधः, तस्मात्-अयोपधात् (बहुव्रीहिगर्भितनञ्तत्पुरुषः)।
अनु०-ङीष् इत्यनुवर्तते। अन्वय:-अस्त्रीविषयाद् अयोपधाद् जाते: प्रातिपदिकात् स्त्रियां ङीष् ।
अर्थ:-अनियतस्त्रीविषयाद् अयकारोपधाद् जातिवाचिन: प्रातिपदिकात् स्त्रियां ङीष् प्रत्ययो भवति।
उदा०-कुक्कुटी। सूकरी। ब्राह्मणी।
आर्यभाषा: अर्थ-(अस्त्रीविषयात्) जो शब्द केवल स्त्रीविषय में ही नियत नहीं है उस (अयोपधात्) यकार उपधा से रहित (जाते:) जातिवाची (प्रातिपदिकात्) प्रातिपदिक से (स्त्रियाम्) स्त्रीलिङ्ग में (डीए) डीष् प्रत्यय होता है।
उदा०-कुक्कुटी=मुर्गी। सूकरी सूअरी। ब्राह्मणी ब्राह्मण जाति की स्त्री। सिद्धि-कुक्कुटी। कुक्कुट+डीए । कुक्कुटी+सु। कुक्कुटी।
यहां स्त्री विषय में अनियत, यकार उपधा से रहित, जातिवाची कुक्कुट' शब्द से स्त्रीलिङ्ग में इस सूत्र से 'डी' प्रत्यय है। ऐसे ही-सूकरी आदि।
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