________________
पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् ङीष्
(२२) वाहः ।६१। प०वि०-वाह: ५।१। अनु०-अत्र डीष् इत्यनुवर्तते, न डीप्, ङीष: प्रकरणत्वात् । अन्वय:-वाह: प्रातिपदिकात् स्त्रियां डीए। अर्थ:-वाहन्तात् प्रातिपदिकात् स्त्रियां ङीष् प्रत्ययो भवति । उदा०-दित्यं वहतीति दित्यौही। प्रष्ठं वहतीति प्रष्ठौही।
आर्यभाषा: अर्थ-(वाह:) वाह जिसके अन्त में है उस (प्रातिपदिकात्) प्रातिपदिक से (स्त्रियाम्) स्त्रीलिङ्ग में (डीए) ङीष् प्रत्यय होता है।
उदा०-दित्यं वहतीति दित्यौही। दित्य (राक्षस) को वहन करनेवाली गाड़ी। प्रष्ठं वहतीति प्रष्ठौही। नेता को वहन करनेवाली गाड़ी।
सिद्धि-दित्यौही। वह+ण्वि । वह+० । वाह् । दित्य+वाह+डीए । दित्य+ऊल्+आह्+ई। दित्य+ऊह्+ई। दित्यौही+सु । दित्यौही।
यहां प्रथम वह प्रापणे' (भ्वा०प०) धातु से वहश्च' (३।२।६४) से 'वि' प्रत्यय, वरपक्तस्य' (६।१।६५) से 'वि' का सर्वहारी लोप, प्रत्ययलोपे प्रत्ययलक्षणम्' (१।१।६१) से प्रत्ययलक्षण कार्य 'अत उपधायाः' (७।२।११६) से 'वह' धातु को उपधावृद्धि होती है। दित्य+वाह' इस वाहन्त प्रातिपदिक से स्त्रीलिङ्ग में इस सूत्र से 'डीए' प्रत्यय होता है। 'वाह ऊ' (६।४।१३२) से सम्प्रसारण रूप ऊ आदेश, 'सम्प्रसारणाच्च' (६।१।१०४) से पूर्वरूप-एकादेश और 'एत्येधत्यूठसु' (६।१।८६) से वृद्धिरूप एकादेश होता है। ऐसे ही-प्रष्ठौही। ङीष् (निपातनम्)
(२३) सख्यशिश्वीति भाषायाम्।६२। प०वि०-सखी १।१ अशिश्वी १।१ इति अव्ययपदम्, भाषायाम् ७१। अनु०-डीष् इत्यनुवर्तते। अन्वय:-भाषायां सखी, अशिश्वी इति स्त्रियां डीए ।
अर्थ:-भाषायां विषये सखी, अशिश्वी इति शब्दौ स्त्रियां डीष्-प्रत्ययान्तौ निपात्येते। । उदा०-सखीयं मे ब्राह्मणी। न यस्या: शिशुरस्तीति-अशिश्वी।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org