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चतुर्थाध्यायस्य प्रथमः पादः उदा०-दीर्घजिही वै देवानां हव्यमलेट् । दीर्घजिही ने देवताओं के हव्य को चाट लिया।
सिद्धि-दीर्घजिही । दीर्घ+जिहा। दीजिह ङीष् दीर्घजिही+सु । दीर्घजिही।
यहां जिहा' शब्द के संयोगापध होने से 'स्वाङ्गाच्चोपसर्जनादसंयोगोपधात् (४।१।५४) से डीए' प्रत्यय का प्रतिषेध प्राप्त था, अत: इस सूत्र से वेद में ‘डीए' प्रत्यय निपातित किया गया है। ङीप्
(२१) दिक्पूर्वपदान्डीप्।६०। प०वि०-दिक्-पूर्वपदात् ५।१ डीप् १।१।
स०-दिक् पूर्वपदं यस्य तत्-दिक्पूर्वपदम्, तस्मात्-दिक्पूर्वपदात् (बहुव्रीहिः)।
अन्वय:-दिक्पूर्वात् प्रातिपदिकात् स्त्रियां ङीप् । अर्थ:-दिक्पूर्वपदात् प्रातिपदिकात् स्त्रियां डीप् प्रत्ययो भवति ।
उदा०-प्राङ् मुखं यस्या: सा-प्राङ्मुखी, प्राङ्मुखा। प्राङ् नासिका यस्या: सा-प्राङ्नासिकी, प्राङ्नासिका।
आर्यभाषा: अर्थ- (दिक्पूर्वपदात्) दिशावाची पूर्वपदवाले (प्रातिपदिकात्) प्रातिपदिक से (स्त्रियाम्) स्त्रीलिङ्ग (डीप्) प्रत्यय होता है।
उदा०-प्राङ् मुखं यस्या: सा-प्राङ्मुखी, प्राङ्मुखा । पूर्व दिशा की ओर मुखवाली। प्राङ् नासिका यस्या: सा-प्राङ्नासिकी, प्राङ्नासिका। पूर्व दिशा की ओर नासिकावाली।
सिद्धि-(१) प्राङ्मुखी। प्राक्+मुख । प्राङ्मुख+डी । प्राक्मुखी+सु । प्राङ्मुखी।
यहां दिशावाची प्राक् शब्द उपपद होने पर स्वाङ्गवाची मुख शब्द से स्त्रीलिङ्ग में इस सूत्र से डीप' प्रत्यय है।
यहां स्वागाच्चोपसर्जनादसंयोगोपधात (४।११५४) से लेकर जहां-जहां डीए' प्रत्यय का विधान अथवा प्रतिषेध किया गया है, वहां-वहां दस सूत्र से दिशावाची शब्द पूर्वपद होने पर 'डी' प्रत्यय का विधान किया गया है। 'स्वाङ्गाच्चोपसर्जनाद०' (४।१।५४) से विकल्प से डीए' प्रत्यय का विधान है अत: दिशावाची शब्द पूर्वपद होने पर उस विषय में डीप्' प्रत्यय भी विकल्प से होता है। ऐसे ही सर्वत्र समझ लेवें।
(२) प्राङ्मुखा । प्राक्+मुख । प्राङ्मुख+टाप् । प्राङ्मुखा+सु। प्राङ्मुखा।
यहां 'स्वाङ्गाच्चोपसर्जनाद०' (४।११५४) की विधि से विकल्प पक्ष में अजाद्यतष्टाप्' (४।१।४) से टाप्' प्रयय होता है। ऐसे ही-प्राइनासिकी। प्राङ्नासिका।
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