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चतुर्थाध्यायस्य प्रथमः पादः सिद्धि-(१) वृद्धपत्नी। वृद्ध+पति। वृद्धपति+डीप् । वृद्धपत्न्+ई। वृद्धपत्नी+सु।
वृद्धपत्नी।
यहां वृद्ध' शब्द पूर्वक पति' शब्द से स्त्रीलिङ्ग में इस सूत्र से ‘डीप्' प्रत्यय है पति' शब्द के इकार को नकार' आदेश है। ऐसे ही-स्थूलपत्नी।
(२) वृद्धपतिः। यहां विकल्प पक्ष में 'पति' शब्द से 'डीप्' प्रत्यय नहीं है। ऐसे ही-स्थूलपतिः। नित्यं डीप
(३१) नित्यं सपन्यादिषु ।३५ । प०वि०-नित्यम् ११ सपत्नी-आदिषु ७।३। स०-सपत्नी आदिपेषां ते-सपत्न्यादय:, तेषु-सपत्न्यादिषु (बहुव्रीहिः)। अनु०-डीप्, पत्युः, न इति चानुवर्तते। अन्वय:-सपत्न्यादिषु पत्यु: स्त्रियां नित्यं डीप् नश्च ।
अर्थ:-सपत्न्यादिषु शब्देषु वर्तमानात् पतिशब्दात् प्रातिपदिकात् स्त्रियां नित्यं ङीप् प्रत्ययो भवति, तस्य चान्ते नकारादेशो भवति ।
उदा०-समानः पतिर्यस्या: सा-सपत्नी। एक: पतिर्यस्या: साएकपत्नी।
समान । एक । वीर। पिण्ड। भ्रातृ । पुत्र इति सपत्न्यादयः । अत्र समानादय एव गणे पठ्यन्ते न सपत्न्यादयः, समानस्य सभावार्थ 'सपन्यादिषु' इति पठितम्।
आर्यभाषा: अर्थ-(सपत्न्यादिषु) सपत्नी आदि शब्दों में विद्यमान (पत्युः) पति प्रातिपदिक से (स्त्रियाम्) स्त्रीलिङ्ग में (नित्यम्) सदा (डी) डीप् प्रत्यय होता है (न:) और पति शब्द के अन्त में नकार आदेश होता है।
उदा०-समान: पतिर्यस्या: सा-सपत्नी। तुल्य है पति जिसका वह-सपत्नी। एक: पतिर्यस्या: सा-एकपत्नी। एक है पति जिसका वह-एकपत्नी।
सिद्धि-सपत्नी। समान+पति । सपति+डीप् । सपत्न्+ई। सपत्नी+सु । सपत्नी।
यहां समानपूर्वक 'पति' शब्द से स्त्रीलिङ्ग में इस सूत्र से डीप् प्रत्यय और पति शब्द के इकार को नकार आदेश है। इसी वचन से समान को स-भाव होता है। ऐसे ही-एकपत्नी आदि।
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