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चतुर्थाध्यायस्य प्रथमः पादः प्रातिपदिकम् संज्ञायाम् छन्दसि भाषायाम् भाषार्थ: (४) पापः पापी पापी पापा पापिन ।
(मै०सं० ४।२।१४) (५) अपर: अपरी अपरी अपरा दूसरी ।
(ऋ० १।३२।१३) (६) समानः समानी समानी समाना समान (एक)।
(ऋ० १० ।१९१ ॥३) (७) आर्यकृतः आर्यकृती आर्यकृती आर्यकृता आर्य के द्वारा बनाई हुई।
(मै०सं० १।८।३) (८) सुमङ्गलम् सुमङ्गली सुमङ्गली सुमङ्गला श्रेष्ठ मङ्गलवाली।
(ऋ० १० १८५ ।३३) (९) भेषजम् भेषजी भेषजी भेषजा भिषक् (वैद्य) सम्बन्धिनी।
(तै०सं० ४ १५ ।१०।१) आर्यभाषा: अर्थ-(संज्ञाछन्दसो:) संज्ञा और छन्द विषय में (केवल०भेषजात्) केवल, मामक, भागधेय, पाप, अपर, समान, आर्यकृत, सुमङ्गल भेषज प्रातिपदिकों से (च) भी (स्त्रियाम्) स्त्रीलिङ्ग में (नित्यम्) सदा (डीप्) डीप् प्रत्यय होता है।
उदा०-उदाहरण और उनके अर्थ संस्कृत भाग में देख लेवें। सिद्धि-(१) केवली। केवल+डीप् । केवल्+ई। केवली+सु। केवली।
यहां केवल' शब्द से स्त्रीलिङ्ग में इस सूत्र से 'डीप्' प्रत्यय और यस्येति च' (६।४।१४८) से अ-लोप होता है।
(२) केवला । केवल+टाप् । केवल्+आ। केवला+सु । केवला।
संज्ञा और छन्द से अन्यत्र भाषा में 'अजाद्यतष्टाप्' (४।१।४) से टाप् प्रत्यय होता है।
(३) मामकी। अस्मद्+अण् । ममक+अ। मामक+डीप् । मामकी+सु। मामकी।
यहां प्रथम 'युष्मदस्मदोरन्यतरस्यां खञ् च' (४।३।१) से अस्मद् शब्द से 'अण्' प्रत्यय और तवकममकावेकवचने (४।३।३) से उसके स्थान में ममक आदेश होता है। तत्पश्चात् अण्-प्रत्ययान्त मामक' शब्द से इस सूत्र से 'डीप्' प्रत्यय है।
(४) मामिका । यहां 'वा०-मामकनरकयोरुपसंख्यानम्' (७।३।४४) से क से पूर्व वर्ण को इ-आदेश होता है।
(५) भागधेयी। भाग+धेय। भागधेय+डी । भागधेयी+सु । भागधेयी।
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