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चतुर्थाध्यायस्य प्रथमः पादः अर्थ:-प्रमाणेऽर्थे वर्तमानात् पुरुषान्ताद् द्विगुसंज्ञकाद् अदन्ताद् अनुपसर्जनात् प्रातिपदिकात् तद्धितप्रत्ययस्य लुकि सति स्त्रियां विकल्पेन डीप् प्रत्ययो भवति।
उदा०-द्वौ पुरुषौ प्रमाणं यस्याः सा-द्विपुरुषा परिखा, द्विपुरुषी परिखा। त्रिपुरुषा परिखा, त्रिपुरुषी परिखा।
आर्यभाषा: अर्थ-(प्रमाणे) प्रमाण अर्थ में विद्यमान (पुरुषात्) पुरुष शब्द जिसके अन्त में है उस (द्विगो:) द्विगुसंज्ञक (अत:) अकारान्त (अनुपसर्जनात्) अनुपसर्जन प्रातिपदिक से (तद्धितलुकि) तद्धित प्रत्यय का लुक् हो जाने पर (स्त्रियाम्) स्त्रीलिङ्ग में (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (डीप्) डीप् प्रत्यय होता है।
उदा०-द्वौ पुरुषौ प्रमाणं यस्या: सा-द्विपुरुषा परिखा, द्विपुरुषी परिखा। दो पुरुष माप वाली खाई। त्रिपुरुषा परिखा, त्रिपुरुषी परिखा । तीन पुरुष मापवाली खाई। पुरुष १२० अंगुल।
सिद्धि-द्विपुरुषा-द्विपुरुष+द्वयसच् । द्विपुरुष+० । द्विपुरुष+टाप् । द्विपुरुषा+सु । द्विपुरुषा।
यहां सब कार्य त्रिकाण्डा' (४।१।२३) के समान है। विकल्प पक्ष में 'डीप्' प्रत्यय होता है-द्विपुरुषी। ऐसे ही-त्रिपुरुषा, त्रिपुरुषी।
ङीष्
(२१) बहुव्रीहेरूधसो ङीष् ।२५। प०वि०-बहुव्रीहे: ५।१ ऊधस: ५ ।१ ङीष् १।१। अनु०-द्विगोरिति निवृत्तम्। अन्वय:-ऊधसो बहुव्रीहे: स्त्रियां डीए।
अर्थ:-ऊध:शब्दान्ताद् बहुव्रीहिसंज्ञकात् प्रातिपदिकात् स्त्रियां ङीष् प्रत्ययो भवति।
उदा०-घट इव ऊधो यस्या: सा-घटोनी गौः । कुण्डमिव ऊधो यस्या: सा-कुण्डोनी गौः।
आर्यभाषा: अर्थ-(ऊधस:) ऊध शब्द जिसके अन्त में है उस (बहुव्रीहे:) बहुव्रीहि संज्ञक प्रातिपदिक से (स्त्रियाम्) स्त्रीलिङ्ग में (डीए) डीष् प्रत्यय होता है।
उदा०-घट इव ऊधो यस्या: सा-घटोनी गौः। घड़े के समान ऊधवाली गौ। कुण्डमिव ऊधो यस्या: सा-कुण्डोध्नी गौः । कुण्डा के समान ऊधवाली गौ। ऊध: बांक (दुग्धाधार)।
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