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________________ ५७० पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् यथाविहितम् (यत्) मयडर्थे (२) मधोः ।१३६ । वि०-मधो: ५।१। अनु०-यत्, छन्दसि, मये इति चानुवर्तते। अत्र पूर्ववद् यथायोगं समर्थविभक्तिर्गृह्यते। अन्वय:-छन्दसि यथायोगं विभक्तिसमर्थाद् मधोमये यत् । अर्थ:-छन्दसि विषये यथायोगं विभक्तिसमर्थाद् मधु-शब्दात् प्रातिपदिकाद् मयडर्थे यथाविहितं यत् प्रत्ययो भवति। __ उदा०-मधुनो विकारोऽवयवो वा-मधव्यः । 'मधव्यान् स्तोकान् (पै०सं० १।८८।२) मधुमयानित्यर्थः । आर्यभाषा: अर्थ-(छन्दसि) वेदविषय में यथायोग विभक्ति-समर्थ (मधो:) मधु प्रातिपदिक से (मये) मयट्-प्रत्यय के अर्थ में (यत्) यथाविहित यत् प्रत्यय होता है। उदा०-मधु का विकार वा अवयव-मधव्य। मधव्यान् स्तोकान् (पै०सं० ११८८।२)। सिद्धि-मधव्यम् । मधु+सु+यत् । मतो+य। मधव्य+सु। मधव्यः । यहां प्रथमा-समर्थ 'मधु' शब्द से मयट्-प्रत्यय के अर्थ (प्रकृत) में इस सूत्र से 'यत्' प्रत्यय है। 'ओर्गुणः' (६।४।१४६) से अंग को गुण और वान्तो यि प्रत्यये (७।१।७८) से वान्त (अव्) आदेश होता है। ___ 'मधु' शब्द से व्यचश्छन्दसि' (४।३।१५०) से विकार-अवयव अर्थ में 'मयट्' प्रत्यय प्राप्त था उसका नोत्वद्वर्धविल्वाद् (४।३।१५१) से प्रतिषेध होने पर 'प्राग्दीव्यतोऽण' (४।१।८३) से 'अण्' प्रत्यय होता है किन्तु यहां छन्दोभाषा में उसका अपवाद यत्' प्रत्यय विधान किया गया है। विशेष: 'मधु' शब्द यास्कीय निघण्टु (वैदिक-कोष) में उदक-नामों (१।१२) में पठित है। अत: छन्दोभाषा में मधु शब्द का यथायोग अर्थ होता है। यथाविहितम् (यत्) मयडर्थे समूहे च (३) वसोः समूहे चा१४०। प०वि०-वसो: ५।१ समूहे ७१ च अव्ययपदम् । अनु०-यत्, छन्दसि, मये इति चानुवर्तते। अत्र प्रत्ययार्थबलेन यथायोगं समर्थविभक्तिर्गृह्यते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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