SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 606
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६६ चतुर्थाध्यायस्य चतुर्थः पादः विशेष: 'सोम' शब्द यास्कीय निघण्टु (वैदिक-कोष) में पद-नामों (५ १५) में पठित है। पद-ज्ञान, गमन, प्राप्ति का हेतु। मयट्-समूहार्थप्रत्ययविधिः यः (मयट्र्थे) (१) मये च।१३८ । प०वि०-मये ७१ च अव्ययपदम्। अनु०-छन्दसि, सोमम्, य इति चानुवर्तते। अत्र प्रत्ययार्थबलेन यथायोगं समर्थविभक्तिर्गृह्यते। अन्वय:-छन्दसि यथायोगं विभक्तिसमर्थात् सोमाद् मये च यः । अर्थ:-छन्दसि विषये यथायोगं विभक्तिसमर्थात् सोम-शब्दात् प्रातिपदिकाद् मयट-अर्थे च य: प्रत्ययो भवति । उदा०-सोमस्य विकार:-सोम्य: । 'पिबाति सोम्यं मधु' (ऋ० ८।२४।१३)। सोम्यम्=सोममयमित्यर्थः ।। आगत-विकार-अवयव-प्रकृता मयडर्था वर्तन्ते। हतुमनुष्येभ्योऽन्यतरस्यां रूप्य:' (४।३।८१) 'मयट् च' (४।३।८२)। 'मयड् वैतयोर्भाषायामभक्ष्याच्छादनयो:' (४।३।१४३) 'तत्प्रकृतवचने मयट् (५।४।२१) इति । तत्र यथायोगं समर्थविभक्तिर्भवति। आर्यभाषा: अर्थ-(छन्दसि) वेदविषय में यथायोग विभक्ति-समर्थ (सोमम्) सोम प्रातिपदिक से (मये) मयट्-प्रत्यय के अर्थ में (च) भी (य:) य प्रत्यय होता है। उदा०-सोम का विकार-सोम्य। 'पिबाति सोम्यं मधु' (८।२४।१३) । सोम्य (सोममय) मधु का पान करता है। सिद्धि-सोम्यम् । सोम+डस्+य। सोम्+य। सोम्य+सु। सोम्यम्। यहां षष्ठी-समर्थ सोम' शब्द से मयट्-प्रत्यय के अर्थ में इस सूत्र से 'य' प्रत्यय है। पूर्ववत् अंग के अकार का लोप होता है। विशेष: आगत, विकार, अवयव और प्रकृत अर्थ में मयट्-प्रत्यय का विधान किया गया है। अत: यहां तदनुसार समर्थ-विभक्ति ग्रहण की जाती है। आगत अर्थ में पंचमी, विकार-अवयव अर्थ में षष्ठी और प्रकृत अर्थ में प्रथमाविभक्ति होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy