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________________ चतुर्थाध्यायस्य चतुर्थः पादः आर्यभाषा: अर्थ-(छन्दस:) छन्दः प्रातिपदिक से (निर्मित) बनाया हुआ अर्थ में (यत्) यथविहित यत् प्रत्यय होता है। उदा०-छन्द (स्वेच्छा) से बनाया हुआ-छन्दस्य पुत्र। अपनी इच्छा से जिसे पुत्र मान लिया है वह 'छन्दस्य' पुत्र कहाता है। सिद्धि-छन्दस्य:। छन्दस्+टा+यत् । छन्दस्+य। छन्दस्य+सु। छन्दस्यः। यहां तृतीया-समर्थ छन्दस्' शब्द से निर्मित-अर्थ में इस सूत्र से यथाविहित प्राग्-हितीय यत्' प्रत्यय है। यत्+अण् (२) उरसोऽण् च।६४। प०वि०-उरस: ५ ।१ अण् १।१ च अव्ययपदम् । अनु०-यत्, संज्ञायाम् निर्मित इति चानुवर्तते । पूर्ववत् तृतीयासमर्थविभक्तिर्वर्तते। अन्वयः-तृतीयासमर्थाद् उरसो निर्मितऽण् यच्च संज्ञायाम् । अर्थ:-तृतीयासमर्थाद् उर:शब्दात् प्रातिपदिकाद् निर्मित इत्यस्मिन्नर्थेऽण् यच्च प्रत्ययो भवति, संज्ञायां गम्यमानायाम् । उदा०-उरसा निर्मित:-औरस: पुत्र: (अण्) । उरस्य: पुत्र: (यत्) । आर्यभाषा: अर्थ-तृतीया-समर्थ (उरस:) उरस् प्रातिपदिक से (निर्मित) बनाया हुआ अर्थ में (अण्) अण् (च) और (यत्) यथाविहित यत् प्रत्यय होते हैं। . उदा०-उर:=आत्मा से बनाया हुआ-औरस पुत्र खुद बेटा (अण्)। उरस्य पुत्र (यत्) अर्थ पूर्ववत् है। सिद्धि-(१) औरसः । उरस्+टा+अण। औरस्+अ। औरस+सु। औरसः। यहां तृतीया-समर्थ 'उरस्' शब्द से निर्मित अर्थ में इस सूत्र से 'अण्' प्रत्यय है। पूर्ववत् अंग को आदिवृद्धि होती है। (२) उरस्य: । यहां उरस्’ शब्द से पूर्ववत् यत्' प्रत्यय है। प्रियार्थप्रत्ययविधिः यथाविहितम् (यत्) (१) हृदयस्य प्रियः।६५। प०वि०-हृदयस्य ६ ।१ प्रिय: १।१। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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