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चतुर्थाध्यायस्य चतुर्थः पादः
५१३ उदा०-भक्तम् अस्मै नियुक्तं दीयते-भाक्तं गुरुकुलम् (अण्) । भाक्तिकं गुरुकुलम् (ठक्)।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) प्रथमा-समर्थ (भक्तात्) भक्त प्रातिपदिक से (अस्मै) इसके लिये अर्थ में (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (अण्) अण् प्रत्यय होता है और पक्ष में (ठक्) ठक् प्रत्यय होता है (नियुक्तं दीयते) जो प्रथमा-समर्थ है यदि वह नियुक्त (अवश्य) दिया जाता है, हो।
उदा०-भक्त (अन्न) इसके लिये नियुक्त (अवश्य) दिया जाता है यह-भाक्त गुरुकुल (अण्)। भाक्तिक गुरुकुल (ठक्) । अभिप्राय यह है कि जब भक्त (अन्न) का दान किया जाता है तब गुरुकुल को अवश्य दिया जाता है।
सिद्धि-(१) भाक्तम् । भक्त+सु+अण् । भाक्त्+अ । भाक्त+सु । भाक्तम्।
यहां प्रथमा-समर्थ 'भक्त' शब्द से अस्मै अर्थ में तथा नियुक्तं दीयते' अभिधेय में इस सूत्र से 'अण्' प्रत्यय है। पूर्ववत् अंग को आदिवृद्धि और अंग के अकार का लोप होता है।
(२) भाक्तिकम् । यहां पूर्वोक्त 'भक्त' शब्द से विकल्प पक्ष में यथविहित प्राग्वहतीय ठक्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
नियुक्त-अर्थप्रत्ययविधिः यथाविहितम् (ठक)
(१) तत्र नियुक्तः ।६६ । प०वि०-तत्र अव्ययपदम्, नियुक्त: १।१। अनु०-ठक् इत्यनुवर्तते। अन्वय:-तत्र प्रातिपदिकाद् नियुक्तष्ठक्।
अर्थ:-तत्र इति सप्तमीसमर्थात् प्रातिपदिकाद् नियुक्त इत्यस्मिन्नर्थे यथाविहितं ठक् प्रत्ययो भवति । नियुक्त:=अधिकृत:, व्यापारित इत्यर्थः ।
। उदा०-शुल्कशालायां नियुक्त:-शौल्कशालिकः। आकरिकः । आपणिक: । गौल्मिक: । दौवारिकः ।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्र) सप्तमी-समर्थ प्रातिपदिक से (नियुक्तः) अधिकृत/ लगाया हुआ अर्थ में (ठक) यथाविहित ठक् प्रत्यय होता है।
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