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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् यहां उपगु' शब्द से तस्यापत्यम् (४।१।९२) से 'अण्' प्रत्यय, तद्धितेष्वचामादेः' (७।२।११७) से अंग को आदिवृद्धि, ओर्गुणः' (६।४।१४६) से अंग को गुण होता है। इस सूत्र से स्त्रीलिङ्ग में 'डी' प्रत्यय होता है।
(५) औत्सी। उत्स+अञ् । औत्स+डी। औत्सी+सु । औत्सी।
यहां उत्सादिभ्योऽज्ञ (४।१।८६) से 'अञ्' प्रत्यय और इस सूत्र से स्त्रीलिङ्ग 'डीप्' प्रत्यय है। ऐसे ही-औदपानी (उदपान+अञ्) ।
(६) ऊरुद्वयसी। ऊरु+द्वयसच् । अरुद्वयस+डीप् । ऊरुद्वयसी+सु। ऊरुद्वयसी।
यहां ऊरु' शब्द से 'प्रमाणे द्वयसज्दघ्नमात्रच्' (५।२।३७) से द्वयसच् प्रत्यय और इस सूत्र से स्त्रीलिङ्ग में 'डीप्' प्रत्यय होता है। ऐसे ही-जानुद्वयसी।
(७) ऊरुदघ्नी । ऊरु+दनच् । पूर्ववत् । (८) उरुमात्री। ऊरु+मात्रच् । पूर्ववत् । (९) पञ्चतयी। पञ्च+तयम् । पञ्चतय+डीप्। पञ्चतयी+सु। पञ्चतयी।
यहां 'पञ्च' शब्द से 'संख्याया अवयवे तयप्' (५।२।४२) से तयप्' प्रत्यय और इस सूत्र से स्त्रीलिङ्ग में डीप्' प्रत्यय है। ऐसे ही-दशतयी।
(१०) आक्षिकी। अक्ष+ठक् । अक्ष्+इक । आक्षिक+डी । आक्षिकी+सु। आक्षिकी।
यहां तेन दीव्यति खनति जयति जितम्' (४।४।२) से अक्ष शब्द से ठक' प्रत्यय, ठस्येकः' (७।३।५०) से ट्' के स्थान में 'इक्’ आदेश है। इस सूत्र से स्त्रीलिङ्ग में 'डीप्' प्रत्यय है। ऐसे ही-शालाकिकी (शलाका+ठक्+डीप्)।
(११) लावणिकी। लवण+ठञ् । लावण+इक। लावणिक+डीप् । लावणिकी+सु। लावणिकी।
यहां लवण' शब्द से 'लवणाट्ठय्' (४।४।५२) से ठञ्' प्रत्यय और इस सूत्र से स्त्रीलिङ्ग में डीप् प्रत्यय है।
(१२) यादृशी । यद्+दृश्+कञ् । या+दृश्+अ । यादृश+डीप् । यादृशी+सु। यादृशी।
यहां यद्' शब्द उपपद होने पर दृश्' धातु से 'त्यदादिषु दशोऽनालोचने कञ्च ' (३।२।६०) से 'कञ्' प्रत्यय है। आ सर्वनाम्न:' (६।३।९१) से अंग को 'आ' आदेश होता है। इस सूत्र से स्त्रीलिङ्ग में 'डीप्' प्रत्यय है। ऐसे ही-तादृशी (तद्+दृश्+क+डी)।
(१३) इत्वरी। इण्+क्वरम्। इ+तुक्+वर। इत्वर+डीप् । इत्वरी+सु । इत्वरी।
यहां 'इण् गतौ' (अदा०प०) धातु इनश्जिसर्तिभ्य: क्वर' (३।२।१६३) से क्वरम् प्रत्यय है, 'हस्वस्य पिति कृति तुक्' (६।११७१) से तुक्' आगम होता है। इस सूत्र से स्त्रीलिङ्ग में डीप्' प्रत्यय है। ऐसे ही-नश्वरी (नश्+क्वरप्+डीप्)।
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