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चतुर्थाध्यायस्य प्रथमः पादः प्रत्ययाः प्रत्ययान्तपदम् डीप भाषार्थ: (७) मात्र ऊरुमात्रम् ऊरुमात्री कटि-प्रमाणवाली।
जानुमात्रम् जानुमात्री घुटना-प्रमाणवाली। (८) तयप् पञ्चतयम् पञ्चतयी पांच अवयवोंवाली (चित्तवृत्ति)।
दशतयम् दशतयी दश अवयवोंवाली (दिशा)। आक्षिक: आक्षिकी पाशों से खेलनेवाली (जुआरिन)। शालाकिक: शालाकिकी शलाकाओं से खेलनेवाली (जुआरिन)।
लावणिक: लावणिकी लवण का व्यापार करनेवाली। (११) कञ् यादृशः यादृशी जैसी।
तादृशः तादृशी वैसी। (१२) क्वरप् ___इत्वरः इत्वरी घूमनेवाली (घुमक्कड़ नारी) ।
नश्वरः नश्वरी नष्ट होनेवाली (सृष्टि)। आर्यभाषा: अर्थ-(टित्क्व रप:) टित्-प्रत्ययान्त आदि (अत:) अकारान्त (अनुपसर्जनात्) अनुपसर्जन (प्रातिपदिकात्) प्रातिपदिकों से (स्त्रियाम्) स्त्रीलिङ्ग में (डीप्) डीप् प्रत्यय होता है।
उदा०-उदाहरण और उनके अर्थ संस्कृत भाग में देख लेवें।
सिद्धि-(१) कुरुचरी। कुरु+सुप्+च+ट । कुरुचर+डीप् । कुरुचर+ई। कुरुचरी+सु। कुरुचरी।
यहां कुरु' उपपद होने पर 'चर गतौ (भ्वा०प०) धातु से चरेष्ट:' (३।२।१६) से 'ट' प्रत्यय है। प्रत्यय के टित् होने से इस सूत्र से स्त्रीलिङ्ग में 'डीप्' प्रत्यय होता है। यस्येति च' (६।४।१४८) से अंग के अकार का लोप होता है। ऐसे ही-मद्रचरी।
(२) सौपर्णेयी। सुपर्णी+ठक् । सुपर्ण+एय। सौपर्णेय+डी । सौपर्णेयी+सु । सौपर्णेयी।
यहां 'सुपर्णी' शब्द से 'स्त्रीभ्यो ढक्' (४।१।१२०) से 'ढक्' प्रत्यय और इस सूत्र से स्त्रीलिङ्ग में डीप् प्रत्यय होता है। ऐसे ही-वैनतेयी।
(३) कुम्भकारी। कुम्भ+अम्+कृ+अण्। कुम्भ+कृ+अ। कुम्भकार+डीप् । कुम्भकारी+सु। कुम्भकारी।
यहां कुम्भ कर्म उपपद होने पर कृ' धातु से 'कर्मण्यण' (३।२।१) से 'अण' प्रत्यय और इस सूत्र से स्त्रीलिङ्ग में डीप् प्रत्यय होता है। ऐसे ही-नगरकारी।
(४) औपगवी। उपगु+अण् । औपगो+अ । औपगवडीप् । औपगवी+सु। औपगवी।
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