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________________ ५११ the the te चतुर्थाध्यायस्य चतुर्थः पादः अनु०-ठक् इत्यनुवर्तते। अन्वय:-तद् अस्मै ठक्, नियुक्तं दीयते। अर्थ:-तद् इति प्रथमासमर्थात् प्रातिपदिकाद् अस्मै इति चतुर्थ्यर्थे यथाविहितं ठक् प्रत्ययो भवति, यत् प्रथमासमर्थं नियुक्तं दीयते चेत् तद् भवति। नियोगेन=अव्यभिचारेण दीयते इत्यर्थः । उदा०-अग्रे भोजनमस्मै नियुक्तं दीयते-आग्रभोजनिक: । आपूपिकः । शाष्कुलिक:। आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) प्रथमा-समर्थ प्रातिपदिक से (अस्मै) इसके लिये अर्थ में (ठक) यथाविहित ठक् प्रत्यय होता है (नियुक्तं दीयते) जो प्रथमा-समर्थ है यदि वह नियुक्त (अवश्य) दिया जाता है, हो। ___ उदा०-अग्र भोजन (सर्वप्रथम भोजन) इसके लिये अवश्य दिया जाता है यह-आग्रभोजनिक। अपूप भोजन (पूड़ों का भोजन) इसके लिये अवश्य दिया जाता है यह-आपूपिक। शष्कुलि भोजन (पूरियों का भोजन) इसके लिये अवश्य दिया जाता है यह-शाष्कुलिक। जब-जब घर में उत्तम भोजन बनता है तब-तब जिस श्रेष्ठ विद्वान् को अग्रभोजन कराया जाता है वह आग्रभोजनिक कहाता है। ऐसे ही-आपूपिक आदि का भी अभिप्राय समझें। सिद्धि-आप्रभोजनिकः । आग्रभोजन+सु+ठक् । आग्भोज्+इक । आग्रभोजनिक+सु। आग्रभोजनिकः। यहां प्रथमा-समर्थ 'अग्रभोजन' शब्द से 'अस्मै' अर्थ में तथा नियुक्तं दीयते' 'अवश्य दिया जाता है' इस अभिधेय में इस सूत्र से यथाविहित प्राग्वहतीय ठक्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-आपूपिक:, शाष्कुलिकः । टिठन्- नियुक्तं दीयते (२) श्राणामांसौदनाटिठन्।६७ । प०वि०-श्राणा-मांसौदनात् ५।१ टिठन् १।१ । स०-मांसं च ओदनश्च एतयो: समाहारो मांसौदनम् । श्राणा च मांसौदनं च एतयो: समाहार: श्राणामांसौदनम्, तस्मात्-श्राणामांसौदनात् (समाहारद्वन्द्व:)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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