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________________ ४६१ चतुर्थाध्यायस्य चतुर्थः पादः उदा०-धर्मं चरति-धार्मिकः । आर्यभाषा अर्थ-(तत्) द्वितीया-समर्थ (धर्मम्) धर्म प्रातिपदिक से (चरति) बार-बार आचरण करता है अर्थ में (ठक्) यथाविहित ठक् प्रत्यय होता है। उदा०-जो धर्म का पुन:-पुन: आचरण करता है वह-धार्मिक । सिद्धि-धार्मिक: । धर्म+अम्+ठक् । धार्म+इक। धार्मिक+सु। धार्मिकः । यहां द्वितीया-समर्थ 'धर्म' शब्द से चरति अर्थ में यथाविहित प्रागवहतीय 'ठक' प्रत्यय है। पूर्ववत् अंग को आदिवृद्धि और अंग के अकार का लोप होता है। एति-अर्थप्रत्ययविधिः ठन्+ठक् (१) प्रतिपथमेति ठुश्च ।४२। प०वि०-प्रतिपथम् अव्ययपदम् (द्वितीयार्थे), एति क्रियापदम्, ठन् ११ च अव्ययपदम्। स०-पन्थानं पन्थानं प्रति इति प्रतिपथम् (अव्ययीभाव:)। अनु०-तत्, ठक् इति चानुवर्तते । अन्वय:-तत् प्रतिपथम् एति ठन् ठक् च। अर्थ:-तद् इति द्वितीयासमर्थात् प्रतिपथशब्दात् प्रातिपदिकाद् एतीत्यस्मिन्नर्थे ठन् ठक् च प्रत्ययो भवति । उदा०-प्रतिपथम् एति-प्रतिपथिक: (ठन्) । प्रातिपथिक: (ठक्) । आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) द्वितीया-समर्थ (प्रतिपथम्) प्रतिपथ प्रातिपदिक से (एति) प्राप्त करता है अर्थ में (ठन्) छन् (च) और (ठक्) यथाविहित ठक् प्रत्यय होता है। उदा०-जो प्रतिपथ प्रत्येक मार्ग (जल, स्थल, आकाश) को प्राप्त करता है वह-प्रतिपथिक (ठन्) । प्रातिपथिक (ठक्) । सिद्धि-(१) प्रतिपथिकः । प्रतिपथ+अम्+छन् । प्रतिपथ्+इक। प्रतिपथिक+सु। प्रतिपथिकः। यहां द्वितीया-समर्थ प्रतिपथ' शब्द से एति अर्थ में इस सूत्र से ठन्' प्रत्यय है। पूर्ववत् ह' के स्थान में 'इक' आदेश और अंग के अकार का लोप होता है। प्रत्यय के नित् होने से जित्यादिनित्यम्' (६।१९४) से आधुदात्त स्वर होता है-प्रतिपथिकः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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