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चतुर्थाध्यायस्य चतुर्थः पादः यहां तृतीया-समर्थ विवध' शब्द से हरति-अर्थ में इस सूत्र से प्ठन्' प्रत्यय है। पूर्ववत् ' के स्थान में 'इक्’ आदेश और अंग के अकार का लोप होता है। प्रत्यय के षित् होने से स्त्रीत्व-विवक्षा में षिद्गौरादिभ्यश्च' (४।१।४१) से डीए प्रत्यय होता हैविवधिकी।
(२) वैवधिकः । यहां तृतीया-समर्थ विवध' शब्द से हरति-अर्थ में विकल्प पक्ष में प्राग्वहतेष्ठक् (४।४।१) से प्राग्वहतीय ठक्' प्रत्यय होता है। पूर्ववत् ' के स्थान में 'इक्' आदेश, किति च' (७।२।११८) से अंग को आदिवृद्धि और पूर्ववत् अंग के अकार का लोप होता है। स्त्रीत्व-विवक्षा में 'टिड्ढाणञ्' (४।१।१५) से 'डीप्' प्रत्यय होता है। अण्
(४) अण् कुटिलिकायाः।१८। प०वि०-अण् ११ कुटिलिकाया: ५।१ । अनु०-तेन, हरति इत्यनुवर्तते । अन्वय:-तेन कुटिलिकाया हरति अण् ।
अर्थ:-तेन इति तृतीयासमर्थात् कुटिलिकाशब्दात् प्रातिपदिकाद् हरतीत्यस्मिन्नर्थेऽण् प्रत्ययो भवति ।
उदा०-कुटिलिकया हरति-मृगो व्याधम्-कौटिलिको मृग: । कुटिलिकया हरत्यङ्गारान्-कौटिलिक: कर्मारः।
कुटिलिका वक्रगतिः, कर्माराणामायुधकर्षणी लोहमयी यष्टिश्च कथ्यते।
आर्यभाषाअर्थ-(तेन) तृतीया-समर्थ (कुटिलिकाया:) कुटिलिका प्रातिपदिक से (हरति) हरति-अर्थ में (अण्) अण् प्रत्यय होता है।
उदा०-कुटिलिका (वक्रगति) से देशान्तर में जो मृग शिकारी को हरण करता है वह-कौटिलिक मृग। कुटिलिका (भट्ठी से आयुधों को खींचनेवाली लोह की छड़ी) से आयुधों को जो हरण करता है वह-कौटिलिक कार (लोहार)। कुटिलिका शब्द के वक्रगति और टेढ़ी लोह की छड़ी ये दो अर्थ हैं।
__सिद्धि-कौटिलिकः । कुटिलिका+टा+अण् । कौटिलिक्+अ। कौटिलिक+सु । कौटिलिकः ।
यहां तृतीया-समर्थ कुटिलिका' शब्द से हरति-अर्थ में इस सूत्र से 'अण' प्रत्यय है। पूर्ववत् अंग को आदिवृद्धि और अंग के आकार का लोप होता है।
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