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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् भस्त्रा। भरट । भरण । शीर्षभार । शीर्षेभार। अंसभार । अंसेभार। इति भस्त्रादयः।।
आर्यभाषा: अर्थ-तिन) तृतीया-समर्थ (भस्त्रादिभ्यः) भस्त्रा-आदि प्रातिपदिकों से (हरति) हरति अर्थ में (ष्ठन्) ष्ठन् प्रत्यय होता है।
उदा०-भस्त्रा (मशक) से जो जल-हरण करता है वह-भस्त्रिक। यदि स्त्री हो तो-भस्त्रिकी। भरट (नौकर) से जो कोई वस्तु देशान्तर में पहुंचाता है वह-भरटिक। यदि स्त्री हो तो-भरटिकी।
सिद्धि-भस्त्रिकः । भस्त्रा+टा+ष्ठन्। भस्त्र+इक। भस्त्रिक+सु । भस्त्रिकः ।
यहां तृतीया-समर्थ 'भस्त्रा' शब्द से हरति अर्थ में ष्ठन्' प्रत्यय है। ठस्येक:' (७।३।५०) से ठ' के स्थान में 'इक’ आदेश और 'यस्येति (६।४।१४८) से अंग के आकार का लोप होता है। प्रत्यय के षित होने से स्त्रीत्व-विवक्षा में षिद्गौरादिभ्यश्च (४।११४१) से 'डी' प्रत्यय होता है-भस्त्रिकी। ऐसे ही-भरटिकः, भरटिकी इत्यादि। ष्ठन्-विकल्पः
(३) विभाषा विवधात् ।१७। प०वि०-विभाषा १।१ विवधात् ५।१। अनु०-तेन, हरति इति चानुवर्तते । अन्वय:-तेन विवधाद् हरति विभाषा ठन् ।
अर्थ:-तेन इति तृतीयासमर्थाद् विवधात् प्रातिपदिकाद् हरतीत्यस्मिन्नर्थे विकल्पेन ष्ठन् प्रत्ययो भवति, पक्षे च ठक् प्रत्ययो भवति ।
उदा०-(ष्ठन्) विवधेन हरति-विवधिकः । स्त्री चेत्-विवधिकी। (ठक्) वैवधिक: । स्त्री चेत्-वैवधिकी।
आर्यभाषा: अर्थ-तिन) तृतीया-समर्थ (विवधात्) विवध प्रातिपदिक से (हरति) हरति अर्थ में (विभाषा) विकल्प से (प्छन्) ष्ठन् प्रत्यय होता है। पक्ष में औत्सर्गिक ठक्' प्रत्यय होता है।
उदा०-(प्ठन्) विवध (बहंगी) से जो जल आदि हरण करता, है वह-विवधिक (कहार)। यदि स्त्री हो तो-विवधिकी। (ठक्) वैवधिक । यदि स्त्री हो तो-वैवधिकी।
सिद्धि-(१) विवधिकः । विवध+टा+ष्ठन् । विवध्+इक। विवधिक+सु। विवधिकः ।
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