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________________ ४६३ चतुर्थाध्यायस्य चतुर्थः पादः सिद्धि-(१) नाविकः । नौ+टा+ठन् । ना+इक । नाविक+सु । नाविकः । यहां तृतीया-समर्थ नौ' शब्द से तरति अर्थ में इस सूत्र से ठन्' प्रत्यय है। पूर्ववत् ह' के स्थान में 'इक' आदेश होता है। पद का पूर्ववत् आधुदात्त स्वर होता है-नाविकः । ऐसे ही-घटिकः, प्लविकः। (२) बाहुकः। यहां तृतीया-समर्थ 'बाहु' शब्द से पूर्ववत् ठन्' प्रत्यय है। 'इसुसुक्तान्तात् कः' (७।३ ।५१) से 'ट' के स्थान में क्’ आदेश होता है। चरति-अर्थप्रत्ययविधिः यथाविहितम् (ठक) (१) चरति।। वि०-चरति क्रियापदम्। अनु०-तेन, ठक् इति चानुवर्तते। अन्वय:-तेन प्रातिपदिकाच्चरति ठक्। अर्थ:-तेन इति तृतीयासमर्थात् प्रातिपदिकाच्चरतीत्यस्मिन्नर्थे यथाविहितं ठक् प्रत्ययो भवति । चरतिर्भक्षणे गतौ चार्थे वर्तते। उदा०-दना चरति-दाधिक: । हस्तिना चरति-हास्तिकः । शकटेन चरति-शाकटिकः। __आर्यभाषा अर्थ-तिन) तृतीया-समर्थ प्रातिपदिक से (चरति) चरति खाता है वा चलता है, अर्थ में (ठक्) यथाविहित ठक् प्रत्यय होता है। उदा०-दधि (दही) से जो चरति खाता है वह दाधिक। हस्ती (हाथी) से जो चरति-चलता है वह-हास्तिक। शकट (गाड़ी) से जो चरति चलता है वह-शाकटिक। सिद्धि-(१) दाधिक । दधि+टा+ठक् । दाध्+इक। दाधिक+सु। दाधिकः । यहां तृतीया-समर्थ दधि' शब्द से चरति (खाता है) अर्थ में इस सूत्र से ठक्’ प्रत्यय है। पूर्ववत् ह' के स्थान में 'इक' आदेश, अंग को आदिवृद्धि और अंग के इकार का लोप होता है। (२) हास्तिकः । हस्तिन्+टा+ठक् । हास्त्+इक । हास्तिक+सु । हास्तिकः । यहां तृतीया-समर्थ हस्तिन्' शब्द से चरति (चलता है) अर्थ में इस सूत्र से ठक' प्रत्यय है। नस्तद्धिते (६।४।१४४) से हस्तिन्' के टि-भाग (इन्) का लोप होता है। ऐसे ही-शाकटिकः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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