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________________ चतुर्थाध्यायस्य चतुर्थः पादः प्राग्वहतीयप्रत्ययार्थप्रकरणम् ठक-अधिकार: (१) प्राग्वहतेष्ठक।१। प०वि०-प्राक् ११ वहते: ५।१ ठक् १।१ । अन्वय:-वहते: प्राक् ठक्। अर्थ:-'तद्वहति रथयुगप्रासङ्गम्' (४।४ ७६) इति वक्ष्यति, तस्माद् वहति-शब्दात् प्राक् ठक् प्रत्ययो भवतीत्यधिकारोऽयम्। वक्ष्यति 'तेन दीव्यति खनति जयति जितम्' (४।४।२) इति। अक्षैर्दीव्यति आक्षिक इत्यादिकम्। आर्यभाषा: अर्थ-(वहते:) तद्वहति रथयुगप्रासङ्गम्' (४।४ १७६) इस सूत्र में जो 'वहति' शब्द पढ़ा है (प्राक्) उससे पहले-पहले (ठक्) ठक् प्रत्यय होता है। यह अधिकार सूत्र है। जैसे-तेन दीव्यति सनति जयति जितम्' (४।४।२)। अक्ष=पासों से जो खेलता है वह-आक्षिक इत्यादि। सिद्धि-आक्षिक: । अक्ष+भिस्+ठक् । आक्ष+इक । आक्षिक+सु। आक्षिकः । यहां तृतीया-समर्थ 'अक्ष' शब्द से तन दीव्यति खनति जयति जितम् (४।४।२) से 'ठक्' प्रत्यय है। ठस्येकः' (७।३/५०) से ' के स्थान में 'इक्' आदेश और किति च' (७।२।११८) से अंग को आदिवृद्धि होती है। दीव्यति-आद्यर्थप्रत्ययविधि: यथाविहितम् (ठक) (१) तेन दीव्यति खनति जयति जितम्।२। प०वि०-तेन ३१ दीव्यति क्रियापदम्, खनति क्रियापदम्, जयति क्रियापदम्, जितम् ११॥ अनु०-ठक् इत्यनुवर्तते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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