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चतुर्थाध्यायस्य तृतीयः पादः
४५१ है। यहां 'मयड्वैतयोर्भाषायामभक्ष्याच्छादनयोः' (४।३।१४१) से मयट् प्रत्यय प्राप्त था। इस सूत्र से यत्' प्रत्यय का विधान किया गया है।
(२) पयस्यम् । पयस्+डस्+यत्। पयस्+य। पयस्य+सु । पयस्यम् । यहां षष्ठी-समर्थ पयस्' शब्द से विकार अर्थ में इस सूत्र से यत्' प्रत्यय है।
विशेष: (१) यहां गौ' शब्द के प्राणीवाची होने से 'अवयवे च प्राण्योषधिवक्षेभ्यः' (४।३।१३३) के नियम से उससे अवयव और विकार अर्थ में यत्' प्रत्यय होता है। यह 'मयट्' प्रत्यय का अपवाद होने से भक्ष्य और आच्छादन अर्थवाले अवयव और विकार अर्थ में यत् प्रत्यय होता है। गौ का भक्ष्य-विकार दुग्ध आदि 'गव्य' कहाता है, अभक्ष्य मांस आदि नहीं।
(२) 'पयस्' शब्द के प्राणी, ओषधि और वृक्षवाची न होने से पूर्वोक्त नियम से विकार' अर्थ में ही 'यत्' प्रत्यय होता है, अवयव अर्थ में नहीं। यत्
(२७) द्रोश्च ।१५६। प०वि०-द्रो: ५ १ च अव्ययपदम्। अनु०-तस्य, विकार:, अवयवे, च, यत् इति चानुवर्तते। अन्वय:-तस्य द्रोरवयवे विकारे च यत् ।
अर्थ:-तस्य इति षष्ठीसमर्थाद् द्रु-शब्दात् प्रातिपदिकाच्चाऽवयवे विकारे चार्थे यत् प्रत्ययो भवति ।
उदा०-द्रोरवयवो विकारो वा-द्रव्यम्।
आर्यभाषा: अर्थ-(तस्य) षष्ठी-समर्थ (द्रो:) द्रु प्रातिपदिक से (च) भी (अवयवे) अवयव (च) और (विकारः) विकार अर्थ में (यत्) यत् प्रत्यय होता है।
उदा०-द्रु (लकड़ी) का अवयव वा विकार-द्रव्य। सिद्धि-द्रव्यम् । द्रु+डस्+यत् । द्रो+य। द्रव्+य। द्रव्य+सु। द्रव्यम् ।
यहां षष्ठी-समर्थ 'द्र' शब्द से अवयव और विकार अर्थ में इस सूत्र से यत्' प्रत्यय है। 'ओर्गुणः' (६।४।१४६) से अंग को गुण और वान्तो यि प्रत्यये' (६।१।७८) से वान्त (अव्) आदेश होता है। वयः
(२८) माने वयः ।१६०। प०वि०-माने ७१ वय: ११ । अनु०-तस्य, विकारः, द्रोरिति चानुवर्तते।
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