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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा० - एणी-काली हरिणी का अवयव वा विकार - ऐणेय मांस । सिद्धि - ऐणेयम् । एणी+ङस् + ढञ् । ऐण्+एय । ऐणेय+सु । ऐणेयम् । यहां षष्ठी-समर्थ 'एणी' शब्द से अवयव वा विकार अर्थ में इस सूत्र से 'ढञ्' प्रत्यय है। 'आयनेय०' (७/१/२) से द्' के स्थान में 'एय्' आदेश होता है। पूर्ववत् अंग को आदिवृद्धि और अंग ईकार का लोप होता है । 'एणी' शब्द के प्राणीवाची होने से 'प्राणिरजतादिभ्योऽञ्' (३।४।१५४) से अञ् प्रत्यय प्राप्त था, उसका यह अपवाद है। ४५० विशेषः यही 'एण' शब्द का पुंलिङ्ग में निर्देश करने पर 'प्रातिपदिकग्रहणे लिविशिष्टस्यापि ग्रहणम्' इस परिभाषा से स्त्रीलिङ्ग 'एणी' शब्द का भी ग्रहण किया जा सकता था पुन: यहां 'एणी' शब्द को स्त्रीलिङ्ग में निर्देश करने से विदित होता है कि पुंलिङ्ग 'एण' शब्द से 'प्राणिरजतादिभ्योऽञ्' (४ | ३ | १५२ ) से 'अञ्' प्रत्यय ही होता है- एण= काले हरिण का अवयव वा विकार- ऐण' कहाता है। हरिण के मुख आदि अंग अवयव और केश तथा श्रृंग विकार कहाते हैं। यत् (२६) गोपयसोर्यत् | १५८ । प०वि०-गो-पयसोः ६ । २ ( पञ्चम्यर्थे ) यत् १ । १ । स०-गौश्च पयश्च ते गोपयसी, तयो:- गोपयसो: (इतरेतयोगद्वन्द्वः) । अनु० - तस्य, विकार:, अवयवे च इति चानुवर्तते । अन्वयः-तस्य गोपयोभ्याम् अवयवे विकारे च यत् । अर्थ: तस्य इति षष्ठीसमर्थाभ्यां गो- पयोभ्यां प्रातिपदिकाभ्याम् अवयवे विकारे चार्थे यत् प्रत्ययो भवति । उदा०- (गो.) गोरवयवो विकारो वा - गव्यम् । ( पयः ) पयसो विकार: पयस्यम् । आर्यभाषा: अर्थ- (तस्य) षष्ठी - समर्थ (गो-पयसोः) गो और पयस् प्रातिपदिकों से (अवयवे) अवयव (च) और (विकारः) विकार अर्थ में (यत्) यत् प्रत्यय होता है। १- (गो) गौ का अवयव वा विकार- गव्य । (पयस्) पय: = दूध का विकार-पयस्य, दही आदि । उदा० सिद्धि-(१) गव्यम् । गो+ ङस् +यत् । गो+य। गव्+य। गव्य+सु। गव्यम्। यहां षष्ठी समर्थ 'गो' शब्द से अवयव और विकार अर्थ में इस सूत्र से 'यत्' है। 'विप्रत्यये' (६१११७८) से 'मो' शब्द को बान्त (अव्) आवेश होता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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