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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (३) वार्धी । वर्ध+डस्+अण् । वार्ध+अ। वार्ध+डीप् । वार्धी+सु। वार्धी ।
यहां षष्ठी-समर्थ 'वर्ध' शब्द से अवयव और विकार अर्थ में इस सूत्र से मयट्' प्रत्यय का प्रतिषेध होने पर पूर्ववत् प्राग्दीव्यतीय 'अण्' प्रत्यय होता है। पूर्ववत् अंग को आदिवृद्धि और अंग के अकार का लोप होता है। स्त्रीत्व-विवक्षा में 'ड्ढिाणञ्' (४।१।१५) से 'डीप्' प्रत्यय होता है।
(४) बैल्व: । यहां षष्ठी-समर्थ बिल्व' शब्द से इस सूत्र से 'मयट' प्रत्यय का प्रतिषेध होने पर बिल्वादिभ्योऽण् (४।३।१३४) से 'अण' प्रत्यय होता है। पूर्ववत् अंग को आदिवृद्धि और अंग के अकार का लोप होता है। अण्
(१८) तालादिभ्योऽण् ।१५०। प०वि०-ताल-आदिभ्य: ५।३ अण् १।१। स०-ताल आदिर्येषां ते तालादयः, तेभ्य:-तालादिभ्यः (बहुव्रीहि:)। अनु०-तस्य, विकार:, अवयवे, च इति चानुवर्तते । अन्वय:-तस्य तालादिभ्योऽवयवे विकारे चाऽण् ।
अर्थ:-तस्य इति षष्ठीसमर्थेभ्यस्तालादिभ्य: प्रातिपदिकेभ्योऽवयवे विकारे चार्थेऽण् प्रत्ययो भवति।
__उदा०-तालस्यावयवो विकारो वा-तालं धनुः । बार्हिणं चन्द्रकम्, इत्यादिकम्।
तालाद् धनुषि । बाहिणि । इन्द्रालिश । इन्द्रादृश । इन्द्रायुध । चाप । श्यामाको पीयुक्षा। इति तालादयः ।।
आर्यभाषाअर्थ-(तस्य) षष्ठी-समर्थ (तालादिभ्यः) ताल आदि प्रातिपदिकों से (अवयवे) अवयव (च) और (विकारः) विकार अर्थ में (अण्) अण् प्रत्यय होता है।
उदा०-ताल (ताड़) वृक्ष का अवयव वा विकार-ताल (धनुष) । बार्हिण (मयूर) का अवयव वा विकार-बार्हिण चन्दा इत्यादि।
सिद्धि-तालम् । ताल+डस्+अण् । ताल्+अ। ताल+सु । तालम्।
यहां षष्ठी-समर्थ ताल' शब्द से अवयव और विकार अर्थ में इस सूत्र से 'अण्' प्रत्यय है। पूर्ववत् अंग को पर्जन्यवत् आदिवृद्धि और अंग के अकार का लोप होता है। 'तालाद् धनुषि' इस गण-सूत्र से धनुष अर्थ में ही 'अण्' प्रत्यय होता है। यह मयट्' आदि प्रत्ययों का अपवाद है। ऐसे ही-बार्हिणम् आदि।
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