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चतुर्थाध्यायस्य तृतीयः पादः सिद्धि-(१) आम्रमयम् । आम्र+डस्+मयट् । आम्र+मय। आम्रमय+सु । आम्रमयम्।
यहां षष्ठी-समर्थ, वृद्धसंज्ञक 'आम्र' शब्द से अवयव और विकार अर्थ में इस सूत्र से नित्य 'मयट्' प्रत्यय है। ऐसे ही-शालमयम्, शाकमयम्, शरमयम् आदि।
(२) मृण्मयम् । मृत्+डस्+मयट् । मृत्+मय । मृद्+मय। मृन्+मय। मृण+मय। मृण्मय+सु। मृण्मयम्।
यहां षष्ठी-समर्थ मृत्' शब्द से पूर्ववत् 'मयट' प्रत्यय है। झलां जशोऽन्ते (८।२।३९) से त्' को जश्' द्य रोऽनुनासिकेनुनासिको वा' (८।४।४५) से 'द्' को अनुनासिक न्' और वा०-'ऋवर्णाच्चेति वक्तव्यम्' (८१४१) से न्' को णत्व होता है। मयट्
(११) गोश्च पुरीषे।१४३। प०वि०-गो: ५।१ च अव्ययपदम्, पुरीषे ७।१ । अनु०-तस्य इत्यनुवर्तते। अन्वय:-तस्य गोश्च पुरीषे मयट ।
अर्थ:-तस्य इति षष्ठीसमर्थाद् गो-शब्दात् प्रातिपदिकाच्च पुरीषेऽर्थे मयट् प्रत्ययो भवति।
उदा०-गो: पुरीषम्-गोमयम्।
आर्यभाषा: अर्थ- (तस्य) षष्ठी-समर्थ (गो:) 'गो' प्रातिपदिक से (पुरीषे) पुरीष=मल अर्थ में (मयट्) मयट् प्रत्यय होता है।
उदा०-गौ (गाय) का पुरीष (मल)-गोमय (गोबर)। सिद्धि-गोमयम् । गो+डस्+मयट् । गो+मय। गोमय+सु । गोमयम्। यहां षष्ठी-समर्थ 'गो' शब्द से पुरीष (मल) अर्थ में इस सूत्र से 'मयट्' प्रत्यय है।
विशेष: यहां 'गो' शब्द से विकार-अवयव के प्रकरण में पुरीष (मल) अर्थ में मयट् प्रत्यय का विधान किया गया है। पुरीष गौ का अवयव और विकार नहीं है अत: गौ' के सम्बन्धमात्र (तस्य-इदम्) में मयट् प्रत्यय होता है। मयट
(१२) पिष्टाच्च।१४४। प०वि०-पिष्टात् ५।१ च अव्ययपदम् । अनु०-तस्य, विकार इति चानुवर्तते।
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