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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी प्रवचनम् (२) गावेधुकः । गवेधुका + ङस् +अण् । गावेधुक् + अ । गावेधुक+सु । गावेधुकः । यहां षष्ठी - समर्थ 'गवेधुका' शब्द से पूर्ववत् 'अण्' प्रत्यय है। यहां 'कोपधाच्च' (४।३।१३७) से ही 'अण्' प्रत्यय सिद्ध था किन्तु 'मयड्वैतयोर्भाषायामभक्ष्याच्छादनयो:' (४ | ३ | १४३) से 'मयट्' प्रत्यय भी प्राप्त होता है । अत: यह 'अण्' प्रत्यय उस 'मयट् ' प्रत्यय का अपवाद है। अण् ४३० (३) कोपधाच्च । १३५ । प०वि०-कोपधात् ५ ।१ च अव्ययपदम् । स०-क उपधा यस्य तत् कोपधम्, तस्मात् - कोपधात् ( बहुव्रीहि: ) । अनु० - तस्य, विकार:, अवयवे च इति चानुवर्तते । " अन्वयः-तस्य कोपधाच्च अवयवे विकारे चाऽण् । अर्थ: तस्य इति षष्ठीसमर्थात् ककारोपधात् प्रातिपदिकाच्च यथायोगम् अवयवे विकारे चार्थेऽण् प्रत्ययो भवति । उदा० - तर्कोर्विकारस्तार्कवम् । तित्तिडीकस्यावयवो विकारो वा तैत्तिडीकम्। मण्डूकस्यावयवो विकारो वा माण्डूकम् । दर्दुरूकस्यावयवो विकारो वा दार्दुरूकम्। मधूकस्यावयवो विकारो वा माधूकम् । आर्यभाषाः अर्थ- (तस्य) षष्ठी - समर्थ (कोपधात्) ककार उपधावान् प्रातिपदिक से (च) भी (अवयवे) अवयव (च) और (विकार:) विकार अर्थ में (अण्) अण् प्रत्यय होता है। उदा० - तर्क ( ताकू जिस पर चर्खे में सूत लिपटता जाता है) का विकार - तार्कव ( सूत) । तित्तिडीक = इमली के वृक्ष का अवयव वा विकार- तैत्तिडीक । मण्डूक-मेंढक का अवयव वा विकार-माण्डूक। दर्दुरूक = मेंढक का अवयव वा विकार-दारूक । मधूक = महुए के वृक्ष का अवयव वा विकार- माधूक । सिद्धि-तार्कवम् । तर्कु+ङस् +अण् । तार्को+अ । तार्कव+सु । तार्कवम् । यहां षष्ठी-समर्थ, ककारोपध 'तर्क' शब्द से विकार अर्थ में इस सूत्र से 'अण्' प्रत्यय है। यह 'ओरञ्' ( ४ | ३ | ३९ ) से प्राप्त 'अञ्' प्रत्यय का अपवाद है। 'तद्धितेष्वचामादे:' (७ । २ । ११७ ) से अंग को आदिवृद्धि तथा 'ओर्गुण:' (६।४।१४६) अंग को गुण होता है। ऐसे ही- 'तैत्तिडीकम्' आदि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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