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________________ ४१६ चतुर्थाध्यायस्य तृतीयः पादः होता है। वुन्' प्रत्ययान्त शब्द स्वभावत: स्त्रीलिङ्ग में होते हैं, अत: स्त्रीत्व-विवक्षा में 'अजाद्यतष्टाप्' (४।१।४) से टाप्' प्रत्यय और प्रत्ययस्थात् कात्' (७/३/४४) से अंग के ककार से पूर्ववर्ती अकार को इत्त्व होता है। ऐसे ही-काकोलकिका आदि। वुञ् (६) गोत्रचरणाद् वुञ्।१२६ । प०वि०-गोत्र-चरणात् ५ ।१ वुञ् ११ । स०-गोत्रं च चरणं च एतयो: समाहारो गोत्रचरणम्, तस्मात्गोत्रचरणात् (समाहारद्वन्द्वः)। अनु०-तस्य इदमिति चानुवर्तते। अन्वय:-तस्य गोत्रचरणाद् इदं वुञ्। अर्थ:-तस्य इति षष्ठी-समर्थाद् गोत्रवाचिनश्चरणवाचिनश्च प्रातिपदिकाद् इदमित्यस्मिन्नर्थे वुञ् प्रत्ययो भवति । उदा०- (गोत्रम्) ग्लुचुकायनेरिदम्-ग्लौचुकायनकम् । उपगोरिदम्औपगवकम्। कालापकम् । मौदकम् । पैपलादकम्। (चरणम्) चरणाद् धर्माम्नाययोरिष्यते। आर्यभाषा अर्थ-(तस्य) षष्ठी-समर्थ (गोत्रचरणाद्) गोत्रवाची और चरणवाची प्रातिपदिकों से (इदम्) यह अर्थ में (वुञ्) वुञ् प्रत्यय होता है। उदा०-(गोत्र) ग्लुचुकायनि का यह-गलौचुकायन (कार्य)। उपगु का यह-औपगवक (कार्य)। (चरण) कठ का यह (धर्म/आम्नाय) काठक। कलाप का यह-कालापक। मुद का यह-मौदक। पिप्लाद का यह-पैप्लादक। सिद्धि-गलौचुकायनकम् । ग्लुचुकायनि+ङस्+वुञ्। ग्लौचुकायन्+अक। ग्लौचुकायनक+सु । ग्लौचुकायनकम् । यहां षष्ठी-समर्थ, गोत्रवाची 'ग्लुचुकायनि' शब्द से इदम् अर्थ में इस सूत्र से 'वुञ्' प्रत्यय है। पूर्ववत् 'वु' के स्थान में अक' आदेश, अंग को आदिवृद्धि और अंग के इकार का लोप होता है। ऐसे ही-औपगवकम् आदि। विशेष: चरणवाची प्रातिपदिक से वाo- 'चरणाद् धर्माम्नाययोरिष्यते (४।३।१२६) से धर्म और आम्नाय (पाठ्यग्रन्थ) अर्थ में प्रत्ययविधि होती है। वैदिक विद्यापीठ का प्राचीन नाम चरण' है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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