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चतुर्थाध्यायस्य तृतीयः पादः कुलाल। वरुड। चण्डाल। निषाद। कर्मार। सेना। सिरिध्र । सेन्द्रिय। देवराज। परिषत् । वधू। रुरु। ध्रुव । रुद्र । अनडुह। ब्रह्मन् । कुम्भकार । श्वपाक । इति कुलालादय:।।
आर्यभाषा: अर्थ-तिन) तृतीया-समर्थ (कुलालादिभ्यः) कुलाल आदि प्रातिपदिकों से (कृते) बनाया गया अर्थ में (वुञ्) वुञ् प्रत्यय होता है (संज्ञायाम्) यदि वहां संज्ञा अर्थ की प्रतीति हो।
उदा०-कुलाल (कुम्हार) के द्वारा बनाया गया कौलालक (घड़ा)। वरुड (जातिविशेष) के द्वारा बनाया गया-वारुडक। वस्तुविशेष ।
सिद्धि-कौलालकम् । कुलाल+टा+वुञ् । कौलाल+अक । कौलालक+सु । कौलालकम् ।
यहां तृतीया-समर्थ 'कुलाल' शब्द से कृत अर्थ में इस सूत्र से वुञ्' प्रत्यय है। युवोरनाको' (७।१।१) से 'वु' के स्थान में 'अक' आदेश होता है। पूर्ववत् अंग को आदिवृद्धि और अंग के अकार का लोप होता है। ऐसे ही-वारुडकम् आदि। अञ्
(४) क्षुद्राभ्रमरवटरपादपाद।११६ । प०वि०-क्षुद्रा-भ्रमर-वटर-पादपात् ५।१ अञ् १।१ ।
स०-क्षुद्रा च भ्रमरश्च वटरश्च पादपश्च एतेषां समाहार: क्षुद्राभ्रमरवटरपादपम्, तस्मात्-क्षुद्राभ्रमरवटरपादपात् (समाहारद्वन्द्वः) ।
अनु०-तेन, कृते, संज्ञायामिति चानुवर्तते। ... अन्वय:-तेन क्षुद्राभ्रमरवटरपादपात् कृतेऽञ् संज्ञायाम् ।
अर्थ:-तेन इति तृतीयासमर्थेभ्य: क्षुद्राभ्रमरवटरपादपेभ्य: प्रातिपदिकेभ्य: कृत इत्यस्मिन्नर्थेऽञ् प्रत्ययो भवति, संज्ञायां गम्यमानायाम्।
उदा०-क्षुद्राभिः कृतम्-क्षौद्रम् । भ्रामरम्। वाटरम्। पादपम्।
आर्यभाषा: अर्थ-तिन) तृतीया-समर्थ (क्षुद्राभ्रमरवटरपादपात्) क्षुद्रा, भ्रमर, वटर, पादप प्रातिपदिकों से (कृते) बनाया गया अर्थ में (अञ्) अञ् प्रत्यय होता है (संज्ञायाम्) यदि वहां संज्ञा अर्थ की प्रतीति हो।।
उदा०-(क्षुद्रा) क्षुद्रा (छोटी मक्खी) के द्वारा बनाया गया-क्षौद्र (मधु)। (भ्रमर) भ्रमर (बड़ी मक्खी) द्वारा बनाया गया-भ्रामर (मधु)। (वटर) वटर (बटेर पक्षी) द्वारा बनाया गया-वाटर (घौंसला आदि)। (पादप) पादप प्राणिविशेष से बनाया गया-पादप (पदार्थविशेष)।
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