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________________ चतुर्थाध्यायस्य तृतीयः पादः कृतार्थप्रत्ययविधिः यथाविहितं प्रत्ययः (१) कृते ग्रन्थे | ११६ | प०वि० - कृते ७।१ ग्रन्थे ७ । १ । अनु० - तेन इत्यनुवर्तते । अन्वयः - तेन प्रातिपदिकात् कृते यथाविहितं प्रत्ययो ग्रन्थे । अर्थ: तेन इति तृतीयासमर्थात् प्रातिपदिकात् कृत इत्यस्मिन्नर्थे यथाविहितं प्रत्ययो भवति, योऽसौ कृतो ग्रन्थश्चेत् स भवति । उदा०-वररुचिना कृता:-वाररुचाः श्लोका: । हैकुपादो ग्रन्थ :- भैकुराटो ग्रन्थ: । दायानन्दो ग्रन्थः । । आर्यभाषाः अर्थ- (तेन) तृतीया - समर्थ प्रातिपदिक से (कृते) कृत = बनाया गया अर्थ में यथाविहित प्रत्यय होता है (ग्रन्थे) जो कृत है यदि वह ग्रन्थ हो । उदा० - वररुचि के द्वारा बनाये गये - वाररुच श्लोक । हीकुपाद के द्वारा बनाया गया हैकुपाद ग्रन्थ । भीकुराट के द्वारा बनाया गया - भैकुराट ग्रन्थ । दयानन्द के द्वारा बनाया गया-दायानन्द ग्रन्थ ( सत्यार्थप्रकाश ) । ४११ सिद्धि-वाररुचा: । वररुचि+टा+अण् । वाररुच्+अ । वाररुच+जस् । वाररुचाः। यहां तृतीया-समर्थ ‘वररुचि' शब्द से कृत (ग्रन्थ) अर्थ में इस सूत्र से यथाविहित प्रत्यय का विधान किया गया है। अत: 'प्राग्दीव्यतोऽण्' (४।१।८३) से प्राग्दीव्यतीय 'अण्' प्रत्यय होता है। पूर्ववत् अंग को आदिवृद्धि और अंग के इकार का लोप होता है। ऐसे ही - हैकुपाद:, भैकुराटः, दायानन्दः । Jain Education International विशेषः वररुंचिकृत श्लोक निश्चय ही पाणिनि से अर्वाचीन हैं। यह वररुचि वार्तिककार कात्यायन है। पतञ्जलि ने महाभाष्य (४ । ३ । १०१) में वाररुच काव्य का निर्देश किया है (पं० युधिष्ठिर मीमांसककृत संस्कृतव्याकरणशास्त्र का इतिहास पृ० १८८-८९) । यथाविहितं प्रत्ययः (२) (क) संज्ञायाम् ॥ ११७ ॥ वि०-संज्ञायाम् ७।१। अनु०-तेन, कृते, इति चानुवर्तते । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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