SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 439
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०२ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् विशेषः (१) शौनक-ऋग्वेद के शाकल आदि अनेक चरण (वैदिक-विद्यापीठ) हैं। उनमें एक शौनक चरण प्रसिद्ध है। “शौनके चरण के छन्द-ग्रन्थ का अध्ययन करनेवाले 'शौनकिनः' कहलाते थे। इस चरण का शाकलों (शाकल चरणवालों) के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध था। ऋग्वेद के सम्बन्ध में शौनकों ने बहुत-कुछ साहित्यिक कार्य किया। ऋग्वेद प्रातिशाख्य भी मुख्यत: इसी चरण का (ग्रन्थ) है (पाणिनिकालीन भारतवर्ष पृ० ३१६)। (२) वर्तमान में उपलब्ध शुक्ल यजुर्वेद वाजसनेय' चरण का ग्रन्थ है। इसके अध्येता वाजसनेयिनः' कहलाते थे। प्रोक्तार्थप्रत्ययस्य लुक (७) कठचरकाल्लुक् ।१०७। प०वि०-कठ-चरकात् ५ १ लुक् १।१ । स०-कठश्च चरकश्च एतयो: समाहार: कठचरकम्, तस्मात्कठचरकात् (समाहारद्वन्द्व:)। अनु०-तेन, प्रोक्तम्, छन्दसीति चानुवर्तते। अन्वय:-तेन कठचरकात् प्रोक्तं प्रत्ययस्य लुक् छन्दसि। अर्थ:-तेन इति तृतीयासमर्थाभ्यां कठचरकाभ्यां प्रातिपदिकाभ्यां प्रोक्तमित्यस्मिन्नर्थे विहितस्य प्रत्ययस्य लुग् भवति, यत् प्रोक्तं छन्दश्चेत् तद् भवति । उदा०-(कठः) कठेन प्रोक्तं छन्दोऽधीयते-कठा: । (चरकः) चरकेण प्रोक्तं छन्दोऽधीयते-चरका: । आर्यभाषा: अर्थ-तिन) तृतीया-समर्थ (कठचरकात्) कठ, चरक प्रातिपदिकों से (प्रोक्तम्) प्रोक्त अर्थ में विहित प्रत्यय का (लुक्) लोप होता है (छन्दसि) जो प्रोक्त है यदि वह छन्द हो। उदा०-(कठ) कठ आचार्य के द्वारा प्रोक्त (छन्द-ग्रन्थ) के अध्येता-कठ। (चरक) चरक आचार्य के द्वारा प्रोक्त (छन्द-ग्रन्थ) के अध्येता-चरक। सिद्धि-(१) कठा: । कठ+टा+णिनि। कठ+0। कठ+जस् । कठाः । यहां तृतीया-समर्थ कठ' शब्द से प्रोक्त अर्थ में अध्येता-वेदिता विषय में एवं छन्द अभिधेय में विहित प्रत्यय का लुक्-विधान किया गया है। यहां कठ' के वैशम्पायन आचार्य के अन्तेवासी (शिष्य) होने से कलापिवैशम्पायनान्तेवासिभ्यश्च' (४।३।१०४) से णिनि' प्रत्यय का विधान किया गया है। इस सूत्र से उसका लुक होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy