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________________ चतुर्थाध्यायस्य तृतीयः पादः ४०१ विशेष प्राचीन ऋषियों ने वेदों की व्याख्या में ब्राह्मण-ग्रन्थों की रचना की थी। ऋक्, यजु, साम और अथर्ववेद के ऐतरेय, शतपथ, साम और गोपथ ये चार ब्राह्मणग्रन्थ प्रसिद्ध हैं। यहां भल्लु (भालव) तथा शाट्यायन ब्राह्मण का भी उल्लेख किया गया है। वेदों की व्याख्या में ही शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्यौतिष इन छ: वेदांगों की रचना की गई। यहां पैङ्ग तथा अरुणपराज नामक कल्प वेदांग का भी उल्लेख किया गया है। णिनिः (६) शौनकादिभ्यश्छन्दसि।१०६ । प०वि०-शौनक-आदिभ्य: ५।३ छन्दसि ७।१। स०-शौनक आदिर्येषां ते शौनकादय:, तेभ्य:-शौनकादिभ्य: (बहुव्रीहिः)। अनु०-तेन, प्रोक्तम्, णिनिरिति चानुवर्तते।। अन्वय:-तेन शौनकादिभ्य: प्रोक्तं णिनिश्छन्दसि । अर्थ:-तेन इति तृतीयासमर्थेभ्य: शौनकादिभ्य: प्रातिपदिकेभ्य: प्रोक्तमित्यस्मिन्नर्थे णिनि: प्रत्ययो भवति, यत् प्रोक्तं छन्दश्चेत् तद्भवति । उदा०-शौनकेन प्रोक्तं छन्दोऽधीयते-शौनकिनः। वाजसनेयिनः । शौनक। वाजसनेय। साङ्घरव। शालरव। सांपेय। शाखेय। खाडायन । स्कन्द । स्कन्ध । देवदत्तशठ। रज्जुकण्ठ। रज्जुभार । कठशाड। कशाय । तलवकार । पुरुषासक । अश्वपेय । स्कम्भ । इति शौनकादयः ।। आर्यभाषा: अर्थ-तिन) तृतीया-समर्थ (शौनकादिभ्यः) शौनक आदि प्रातिपदिकों से (प्रोक्तम्) प्रोक्त अर्थ में (णिनि:) णिनि प्रत्यय होता है (छन्दसि) जो प्रोक्त है यदि वह छन्द हो। उदा०-शौनक मुनि के द्वारा प्रोक्त (छन्द) के अध्येता-शौनकी। वाजसनेय मुनि के द्वारा प्रोक्त (छन्द) के अध्येता-वाजसनेयी। सिद्धि-शौनकिनः । शौनक+टा+णिनि । शौनक+इन् । शौनकिन्+जस् । शौनकिनः । यहां तृतीया-समर्थ शौनक' शब्द से प्रोक्त अर्थ में, अध्येता-वेदिता विषय में एवं छन्द अभिधेय में इस सूत्र से णिनि' प्रत्यय है। तद्धितेष्वचामादेः' (७।२।११७) से अंग को पर्जन्यवत् आदिवृद्धि और यस्येति च' (६।४।१४८) से अंग के अकार का लोप होता है। ऐसे ही-वाजसनेयिन: आदि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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