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________________ ३६६ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (२) आपिशलम् । आपिशलि+टा+अण् । आपिशल्+अ । आपिशल+सु। आपिशलम्। ___ यहां तृतीया-समर्थ प्रातिपदिक से प्रोक्त अर्थ में यथाविहित प्रत्यय का विधान किया है। अत: गोत्रप्रत्ययान्त 'आपिशलि' शब्द 'इश्च' (४।२।१११) से 'अण्' प्रत्यय होता है। तद्धितेष्वचामादेः' (७।२।११७) से अंग को पर्जन्यवत् आदिवृद्धि और 'यस्येति च (६।४।१४८) से अंग के इकार का लोप होता है। ऐसे ही-काशकृत्स्नम् । छण (२) तित्तिरिवरतन्तुखण्डिकोखाच्छण् ।१०२। प०वि०-तित्तिरि-वरतन्तु-खण्डिका-उखात् ५।१ छण् १।१ । स०-तित्तिरिश्च वरतन्तुश्च खण्डिकश्च उखश्च एतेषां समाहार:-तित्तिरिवरतन्तुखण्डिकोखम्, तस्मात्-तित्तिरिवरतन्तुखण्डिकोखात् (समाहारद्वन्द्वः)। अनु०-तेन प्रोक्तमिति चानुवर्तते। अन्वय:-तेन तित्तिरिवरतन्तुखण्डिकोखात् प्रोक्तं छण् । अर्थ:-तेन इति तृतीयासमर्थेभ्यस्तित्तिर्यादिभ्यः प्रातिपदिकेभ्य: प्रोक्तमित्यस्मिन्नर्थे छण् प्रत्ययो भवति। ___ शौनकादिभ्यश्छन्दसि' (४।३।१०६) इत्यत्र प्रोक्तार्थस्यानुवृत्ते: 'छन्दोब्राह्मणानि च तद्विषयाणि' (४।२।६२) इत्यनेन च छन्दसां ब्राह्मणानां च तद्विषयतया अध्येतृवेदितृविषयतयाऽत्राध्येतृविषये प्रत्ययविधिर्भवति, न प्रोक्तार्थमात्रे। उदा०-(तित्तिरिः) तित्तिरिणा प्रोक्तमधीयते-तैत्तिरीया: । (वरतन्तुः) वारतन्तवीया: । (खण्डिका:) खाण्डिकीया: । (उखा:) औखीया: । आर्यभाषा: अर्थ-तिन) तृतीया-समर्थ (तित्तिरि०उखात्) तित्तिरि, वरतन्तु, खण्डिक, उख प्रातिपदिकों से (प्रोक्तम्) प्रोक्त अर्थ में (छण्) छण् प्रत्यय होता है। शौनकादिभ्यश्छन्दसि' (४।३।१०६) सूत्र से प्रोक्त अर्थ की अनुवृत्ति होने से और 'छन्दोब्राह्मणानि च तद्विषयाणि (४।२।६२) से छन्द और ब्राह्मणवाची शब्दों से प्रत्ययविधि में तद्विषयता अध्येता, वेदिता अर्थ के विधान से यहां तित्तिरि आदि आचार्यों द्वारा प्रोक्त छन्दों के अध्येता अर्थ में प्रत्यय विधि होती है; प्रोक्त अर्थ में नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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