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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (३) प्रातिपदिक
(१) देवः । देव+सु। देवः। ___ यहां प्रथम कृदन्त देव' शब्द की कृत्तद्धितसमासाश्च' (१।२।४६) से प्रातिपदिक संज्ञा और उससे इस सूत्र से 'सु' प्रत्यय होता है। पूर्ववत् रुत्व और विसर्जनीय आदेश होता है।
(२) देवान् । देव+शस् । देव+अस् । देवा+स्। देवान्।
यहां देव' शब्द से 'शस्' प्रत्यय, 'प्रथमयो: पूर्वसवर्णः' (६।१।१०१) से पूर्व सवर्ण दीर्घ और तस्माच्छसो न: पुंसि (६।१।१०२) से 'शस्' के स्' को न्' आदेश होता है।
(३) देवेन । देव+टा। देव+इन। देवेन।
यहां देव' शब्द से 'टा' प्रत्यय, 'टाङसिङसामिनात्स्या:' (७।१।१२) से 'टा' के स्थान में इन' आदेश होता है।
(४) देवैः । देव+भिस् । देव+ऐस् । देवैः ।
यहां देव' शब्द से भिस्' प्रत्यय और अतो भिस ऐस्' (७।१।९) से भिस्' के स्थान में ऐस्' आदेश होता है।
(५) देवाय । देव-डे । देव+य। देवाय ।
यहां देव' शब्द से डे' प्रत्यय, 'डेर्य:' (७।१।१३) से डे' के स्थान में य' आदेश और सुपि च' (७।३।१०२) से अंग को दीर्घ होता है।
(६) देवेभ्यः । देव+भ्यस् । देवे+भ्यः । देवेभ्यः ।
यहां देव' शब्द से 'भ्यस्' प्रत्यय और बहुवचने झल्येत्' (७।३।१०३) से अंग को ए' आदेश होता है।
(७) देवात् । देव+डसि । देव+आत्। देवात्।
यहां देव' शब्द से ‘डसि' प्रत्यय और पूर्ववत् (७।१।१२) से ‘डसि' के स्थान में 'आत्' आदेश होता है।
(८) देवस्य । देव+डस् । देव+स्य। देवस्य ।
यहां देव' शब्द से ‘ङस्' प्रत्यय और पूर्ववत् (७।१।१२) से ‘डस्' के स्थान में स्य' आदेश होता है।
(९) देवयोः । देव+ओस् । देवे+ओः । देवयोः ।
यहां देव' शब्द से 'ओस्' प्रत्यय और ओसि च (७।३।१०४) से अंग को 'ए' आदेश होता है।
(१०) देवानाम् । देव+आम् । देव+नुट्+आम्। देव+नाम् । देवानाम् ।
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