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चतुर्थाध्यायस्य प्रथमः पादः
(३) अजया । अजा+टा। अजे+आ। अजया ।
यहां 'अजा' शब्द से 'टा' प्रत्यय 'आङि चाप:' ( ७ | ३ |१०५) से 'टाप्' को 'ए' आदेश होता है।
(४) अजायै । अजा + ङे । अजा+याट्+ए। अजायै ।
यहां 'अजा' शब्द से 'डे' प्रत्यय और 'याडाप:' ( ७ | ३ | ११३) से याट् आगम
होता है ।
(५) अजयो: । अजा+ओस् । अजे+ओ। अजयोः ।
यहां 'अजा' शब्द से 'ओस्' प्रत्यय और 'आङि चाप:' (७/३1९०५) से 'टाप्' को 'ए' आदेश होता है ।
(६) अजानाम् । अजा+आम् । अजा+नुट्+आम् । अजानाम् ।
यहां 'अजा' शब्द से 'आम्' प्रत्यय और उसे 'हस्वनद्यापो नुट् (७ 1१1५४) से 'नुट्' आगम होता है।
(७) अजायाम् | अजा+ङि । अजा+याट्+आम् । अजायाम् ।
यहां 'अजा' शब्द से 'ङि' प्रत्यय, उसे 'याडाप:' (७ | ३ |११३) से 'याट्' आगम, 'ङेराम्नाद्याम्नीभ्यः' (७ |३ | ११६ ) से 'ङि' प्रत्यय को 'आम्' आदेश होता है। (८) अजे | अजा+सु | अजे+सु । अजे+0 | अजे ।
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यहां 'अजा' शब्द से 'सु' प्रत्यय, 'सम्बुद्धौ च' (७/३/१०६ ) से 'टाप्' को 'ए' आदेश और 'एङ्-हस्वात् सम्बुद्धे:' ( ६ |१|६९ ) से सम्बुद्धिसंज्ञक 'सु' प्रत्यय का लोप होता है ।
(९) बहुराजा । बहुराजन्+डाप् । बहुराज्+आ। बहुराजा+सु। बहुराजा ।
यहां 'बहुराजन्' शब्द से 'डाबुभाभ्यमन्यतरस्याम्' (४|१|१३) से 'डाप्' प्रत्यय ‘वा०-डित्यभस्यापि टेर्लोप:' ( ६ । ४ । १४३) से टि-भाग (अन्) का लोप होता है। तत्पश्चात् इस सूत्र से 'बहुराजा' शब्द से 'सु' प्रत्यय होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है ।
(१०) कारीषगन्ध्या । करीषगन्ध् + इ । करीषगन्धि+अण् । कारीषगन्ध्+अ । कारीषगन्ध । कारीषगन्ध्+ष्यङ् । कारीषगन्ध्य+चाप् । कारीषगन्ध्य+आ। कारीषगन्ध्या+सु । कारीषगन्ध्या ।
यहां प्रथम 'करीषस्य गन्ध इव गन्धो यस्य स करीषगन्धिः । गन्धस्येदुत्पूतिसुसुरभिभ्य:'- उपमानाच्च ( ५ । ४ । १३७ ) से समासान्त इत्-आदेश होता है। करीषगन्धेरपत्यम् - कारीषगन्धः । तस्यापत्यम्' (४/१/९२ ) से 'अण्' प्रत्यय और 'यस्येति च' (६ । ४ ।१४८) से अंग के इकार का लोप होता है । 'अणिञोरनार्षयो० ' (४/१/७८) से स्त्रीलिङ्ग में 'ष्यङ्' आदेश और यङश्चाप्' ( ४ 1१1७४ ) से स्त्रीलिङ्ग में 'चाप्' प्रत्यय होता है । तत्पश्चात् इस सूत्र से 'सु' आदि प्रत्यय होते हैं।
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