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चतुर्थाध्यायस्य तृतीयः पादः को प्रस्तुत करके बनाया गया प्रकरण-शब्दार्थसम्बन्धीय। (वाक्यपद) वाक्य और पद को प्रस्तुत करके बनाया गया प्रकरण-वाक्यपदीय। (इन्द्रजननादि) इन्द्रजनन (इन्द्र की उत्पत्ति) को प्रस्तुत करके बनाया गया प्रकरण-इन्द्रजननीय। प्रद्युम्नागमन-प्रद्युम्न के आगमन को प्रस्तुत करके बनाया गया प्रकरण-प्रद्युम्नागमनीय।।
इन्द्रजननादि आकृतिगण है, उसका शिष्टप्रयोग से ही अनुसरण किया जाता है क्योंकि वह पाणिनीय-गणपाठ में प्रातिपदिक रूप में नहीं पढ़ा गया है।
सिद्धि-शिशुक्रन्दीयः । शिशुक्रन्द+अम्+छ। शिशुक्रन्द्'ईय। शिशुक्रन्दीय+सु । शिशुक्रन्दीयः।
यहां द्वितीया-समर्थ शिशुक्रन्द' शब्द से अधिकृत्य-कृत (ग्रन्थ) अर्थ में इस सूत्र से छ' प्रत्यय है। 'आयनेय०' (७।१।२) से 'छ' के स्थान में ईय्' आदेश और 'यस्येति च' (६।४।१४८) से अंग के अकार का लोप होता है। ऐसे ही-'यमसभीय:' आदि।
अस्य (षष्ठी) अर्थप्रत्ययप्रकरणम् यथाविहितं प्रत्ययः
(१) सोऽस्य निवासः ।८६। प०वि०-स: ११ अस्य ६।१ निवास: १।१। अन्वय:-स प्रातिपदिकाद् अस्य यथाविहितं प्रत्ययो निवासः ।
अर्थ:-स इति प्रथमासमर्थात् प्रातिपदिकाद् अस्येति षष्ठ्यर्थे यथाविहितं प्रत्ययो भवति, यत् प्रथमासमर्थं निवासश्चेत् स भवति । निवसन्त्यस्मिन्निति निवास:-देश उच्यते।
उदा०-सुजो निवासोऽस्य-स्रौन: । माथुर: । रौहितक: । राष्ट्रिय: ।
आर्यभाषा: अर्थ-(स:) प्रथमा-समर्थ प्रातिपदिक से (अस्य) षष्ठी-विभक्ति के अर्थ में यथाविहित प्रत्यय होता है (निवास:) जो प्रथमा-समर्थ है यदि वह निवास (दश) हो।
उदा०-त्रुघ्न नगर इसका निवास है यह-सौन। मथुरा नगरी इसका निवास है यह-माथुर। रोहितक नगर इसका निवास है यह-रौहितक। राष्ट्र इसका निवास है यह-राष्ट्रिय। यहां निवास शब्द का अर्थ देश' है।
सिद्धि-स्रौनः । सुन+सु+अण् । स्रौन+अ। स्रोज+सु । स्रौनः ।
यहां प्रथमा-समर्थ निवासवाची 'त्रुघ्न' शब्द से इसका' अर्थ में इस सूत्र से यथाविहित प्रत्यय का विधान किया गया है। अत: प्राग्दीव्यतोऽण् (४।१।८३) से
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