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________________ ३८४ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् यथाविहित प्राग्दीव्यतीय 'अण्' प्रत्यय होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है । ऐसे ही - माथुर, रौहितकः, राष्ट्रियः । यथाविहितं प्रत्ययः {अभिजनः } (२) अभिजनश्च ॥ ६० । - प०वि० - अभिजन: १ । १ च अव्ययपदम् । अनु० - स:, अस्य इति चानुवर्तते । अन्वयः-स प्रातिपदिकाद् अस्य यथाविहितं प्रत्ययोऽभिजनश्च । अर्थ:- इति प्रथमासमर्थात् प्रातिपदिकाद् अस्येति षष्ठ्यर्थे यथाविहितं प्रत्ययो भवति, यत् प्रथमासमर्थमभिजनश्च स भवति । अभिजन:= पूर्वबान्धवो भवति, तस्य सम्बन्धाद् देशोऽप्यभिजन इत्युच्यते । यस्मिन् देशे पूर्वबान्धवैरुषितं सोऽभिजन इति कथ्यते। तस्मादिह देशवाचिनः प्रातिपदिकात् प्रत्ययो विधीयते, न बन्धुवाचिभ्यः । यत्र साम्प्रतमुष्यते स निवास इत्युच्यते यत्र च पूर्वैरुषितं सोऽभिजनोऽभिधीयते । उदा० - स्रुघ्नोऽभिजनोऽस्य - स्त्रौघ्नः । माथुरः । रौहितकः । राष्ट्रियः । आर्यभाषाः अर्थ-(सः) प्रथमा-समर्थ प्रातिपदिक से (अस्य) षष्ठी विभक्ति के अर्थ में यथाविहित प्रत्यय होता है (च) और (अभिजन) जो प्रथमा-समर्थ यदि वह अभिजन हो । 'अभिजन' का अर्थ पूर्वबान्धव है। उसके सम्बन्ध से देश को भी 'अभिजन' कहते हैं। जिस देश में पूर्वबान्धव रहे हों उसे 'अभिजन' कहते हैं। इसलिये यहां देशवाची प्रातिपदिक से प्रत्यय होता है, बन्धुवाची से नहीं । निवास और अभिजन में यह भेद है कि जहां वर्तमान में रहते हैं उसे 'निवास' कहते हैं और जहां पूर्वज रहते थे उसे 'अभिजन' कहते हैं । उदा० - स्रुघ्न नगर अभिजन है इसका यह स्रौघ्न । मथुरा नगरी अभिजन है इसका यह - माथुर । रोहितक नगर है अभिजन इसका यह - रौहितक। राष्ट्र है अभिजन इसका यह - राष्ट्रिय । Jain Education International सिद्धि-स्रौघ्नः। स्रुघ्न+सु+अण् । स्रौघ्न्+अ । स्रौघ्न+सु । स्रौघ्नः । यहां प्रथमा-समर्थ, अभिजनवाची 'सुघ्न' शब्द से अस्य - अर्थ में यथाविहित प्रत्यय का विधान किया गया है। अत: 'प्राग्दीव्यतोऽण्' (४।१।८३) से यथाविहित प्राग्दीव्यतीय 'अण्' प्रत्यय होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही- माथुर: रोहितक:, राष्ट्रियः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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