________________
३८१
चतुर्थाध्यायस्य तृतीयः पादः उदा०-जो कान्यकुब्ज (कन्नौज) का द्वार जुन नगर के अभिमुख निकलता है वह-स्रौन (द्वार)। जो दिल्ली नगर का द्वार मथुरा नगरी के अभिमुख निकलता है वह-माथुर (द्वारं)। जो प्राणिप्रस्थ (पानीपत) नगर का द्वार रोहितक नगर के अभिमुख निकलता है वह-रौहितक (द्वार)। जैसे दिल्ली नगर के आधुनिक कश्मीरी गेट, अजमेरी गेट आदि द्वार हैं।
सिद्धि-स्रौघ्नम् । यहां द्वितीया-समर्थ त्रुघ्न' शब्द से अभिनिष्क्रामति अर्थ में तथा द्वार अर्थ अभिधेय में इस सूत्र से यथाविहित प्रत्यय का विधान किया गया है। अत: यहां पूर्ववत् यथाविहित प्राग्दीव्यतीय अण्' प्रत्यय होता है। ऐसे ही-माथुरम्, रौहितकम् ।
अधिकृत्य-कृतार्थप्रत्ययविधिः यथाविहितं प्रत्ययः
(१) अधिकृत्य कृते ग्रन्थे।८७। प०वि०-अधिकृत्य अव्ययपदम्, कृते ७।१ ग्रन्थे ७।१। अनु०-तदित्यनुवर्तते।
अन्वय:-तत् प्रातिपदिकाद् अधिकृत्य कृत यथाविहितं प्रत्ययो ग्रन्थे।
अर्थ:-तद् इति द्वितीयासमर्थात् प्रातिपदिकाद् अधिकृत्य कृत इत्यस्मिन्नर्थे यथाविहितं प्रत्ययो भवति, योऽसौ कृतो ग्रन्थश्चेत् स भवति । अधिकृत्य प्रस्तुत्य इत्यर्थः ।
उदा०-सुभद्रामधिकृत्य कृतो ग्रन्थ:-सौभद्रः । गौरिमित्र: । यायातः ।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) द्वितीया-समर्थ प्रातिपदिक से (अधिकृत्यकृत:) प्रस्तुत करके बनाया' अर्थ में यथाविहित प्रत्यय होता है (ग्रन्थे) जो बनाया है यदि वह ग्रन्थ हो।
उदा०-सुभद्रा को प्रस्तुत करके बनाया ग्रन्थ-सौभद्र। गौरिमित्र को प्रस्तुत करके बनाया ग्रन्थ-गौरिमित्र । ययाति (राजा) को प्रस्तुत करके बनाया ग्रन्थ-यायात ।
सिद्धि-सौभद्रः । सुभद्रा+अम्+अण् । सौभद्+अ। सौभद्र+सु। सौभद्राः ।
यहां द्वितीया-समर्थ 'सुभद्रा' शब्द से अधिकृत्य-कृत (ग्रन्थ) अर्थ में इस सूत्र से यथाविहित प्रत्यय का विधान किया गया है। अत: प्राग्दीव्यतोऽण् (४।१।८३) से यथाविहित प्राग्दीव्यतीय 'अण्' प्रत्यय होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है। सुभद्रा श्रीकृष्ण की बहिन जो वीर अर्जुन को ब्याही थी। ऐसे ही-गौरिमित्र:, यायातः।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org